सुनो.. मैं सुनाऊं एक बात अनमेल..
ब्रह्म निराकार रह्यो गोकुल में खेले
नंद-यशोदा के द्वार
प्रेम नदिया की सदा उल्टी बहे धार
कौन पावे याको पार
प्रेम नदिया की सदा उल्टी बहे धार
🙏श्री राजेश्वरानंन्द जी महाराज🙏
ब्रह्म निराकार रह्यो गोकुल में खेले
नंद-यशोदा के द्वार
प्रेम नदिया की सदा उल्टी बहे धार
कौन पावे याको पार
प्रेम नदिया की सदा उल्टी बहे धार
🙏श्री राजेश्वरानंन्द जी महाराज🙏
Please complete this Bhajan !!! Thank you
जवाब देंहटाएंयह पद पदम् श्री रासाचार्य राम स्वरूप जी के यशस्वी पिता स्वामी मेघश्याम जी द्वारा बहुत प्रसिद्ध रचना है धन्य है ऐसे रसिक सन्त।
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