-:सरस्वती वंदना:-
श्वेत कमलासिनी, सुशोभिता मराल पृष्ठ,
दीप्त शुभ्रविश्व की सुलोचना प्रसार दे।।
तत्व ब्रह्म वेद की स्रुतिपुराण रुपणी माँ,
लेखनी मयूर पंख छांट अंधकार दे।
लक्ष्मीबाई जैसा स्वाभिमान नारियों में भर,
हो सके मनुष्य के चरित्र को संवार दे।
सप्त स्वर दात्री, हे विधात्री पूर्ण ज्ञान लोक
शोक में रहे ना आज कविता सँवार दे।
झंकार तार दे सितार को संभाल अम्ब,
यतिलय गति कर दे अमर शारदे।
तानसेन बैजू-बावरा उतार दे धरा पे,
शब्द राष्ट्र स्वर कर दे प्रखर शारदे।
तेरे दरबार लेकर सपने हजार आए,
यदि हो सके तो काम एक कर शारदे।
कविता, कला का यश गान नित्य होता रहे,
कवियों में ब्रह्मा का विवेक भर शारदे।
कविता के शब्द, शब्द में बढ़ा दे देश प्रेम
रस व्यंजना शिल्प में बढ़ा दे मां।
उर में जगा दे प्यार, याकि कर दे संहार,
किसी तौर धरती पे रामराज जला दे मां।
हंस छोड़ थोड़ी देर, दुर्गा का रूप धार,
खत की प्रहार का भी रूप दर्शा दे माँ।
राष्ट्र को जो मानते हैं सिर्फ एक धर्मशाला,
ऐसे पापियों के सीस धड़ से उड़ा दे मां।
🙏🙏🙏
कवियत्री:- कविता तिवारी जी
श्वेत कमलासिनी, सुशोभिता मराल पृष्ठ,
दीप्त शुभ्रविश्व की सुलोचना प्रसार दे।।
तत्व ब्रह्म वेद की स्रुतिपुराण रुपणी माँ,
लेखनी मयूर पंख छांट अंधकार दे।
लक्ष्मीबाई जैसा स्वाभिमान नारियों में भर,
हो सके मनुष्य के चरित्र को संवार दे।
सप्त स्वर दात्री, हे विधात्री पूर्ण ज्ञान लोक
शोक में रहे ना आज कविता सँवार दे।
झंकार तार दे सितार को संभाल अम्ब,
यतिलय गति कर दे अमर शारदे।
तानसेन बैजू-बावरा उतार दे धरा पे,
शब्द राष्ट्र स्वर कर दे प्रखर शारदे।
तेरे दरबार लेकर सपने हजार आए,
यदि हो सके तो काम एक कर शारदे।
कविता, कला का यश गान नित्य होता रहे,
कवियों में ब्रह्मा का विवेक भर शारदे।
कविता के शब्द, शब्द में बढ़ा दे देश प्रेम
रस व्यंजना शिल्प में बढ़ा दे मां।
उर में जगा दे प्यार, याकि कर दे संहार,
किसी तौर धरती पे रामराज जला दे मां।
हंस छोड़ थोड़ी देर, दुर्गा का रूप धार,
खत की प्रहार का भी रूप दर्शा दे माँ।
राष्ट्र को जो मानते हैं सिर्फ एक धर्मशाला,
ऐसे पापियों के सीस धड़ से उड़ा दे मां।
🙏🙏🙏
कवियत्री:- कविता तिवारी जी
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