प्रेम ही जब इस जगत की इक अकेली नींव है तो
फिर जगत क्यों छीनता है प्रेम का अधिकार मेरा ?
प्राण मेरा गेह मेरा आत्मा का फूल मेरा
नेह को पर दे नहीं सकती हृदय का कूल मेरा
सूर्य मेरा रश्मियाँ भी और मेरा व्योम सारा
पर नहीं अधिकार चुनने का दृगों को एक तारा
मानकर प्रारब्ध अपना एक बंजर सी ज़मीं को
छोड़ना मुझको पड़ा है प्रेम पारावार मेरा !!!
पाँव मेरे,चाल पर फिर बेड़ियाँ जग क्यों लगाए
स्वप्न के मासूम पंछी नैन वन से क्यों उड़ाए
भाव के कितने अभावों की अधिकता जी रही हूँ
जो कभी भी मैं नहीं थी आज बिलकुल मैं वही हूँ
पास मेरे रत्न के अनगिन जड़े हैं हार फिर भी
अश्रुओं के मोतियों से हो रहा शृंगार मेरा!
दूर ये धरती गगन से पर मिलन कब है अधूरा?
बारिशों के रूप में मिलता रहा है प्रेम पूरा
क्या मरा है एक भी चातक जलद का नाम लेकर ?
प्यास की वो हर तपस्या पूर्ण होती बूँद पीकर
चाहता था जो हमेशा हर किसी को वो मिला है
खो गया क्यों बस यहाँ पर प्रेम का उपहार मेरा !
फिर जगत क्यों छीनता है प्रेम का अधिकार मेरा ?
प्राण मेरा गेह मेरा आत्मा का फूल मेरा
नेह को पर दे नहीं सकती हृदय का कूल मेरा
सूर्य मेरा रश्मियाँ भी और मेरा व्योम सारा
पर नहीं अधिकार चुनने का दृगों को एक तारा
मानकर प्रारब्ध अपना एक बंजर सी ज़मीं को
छोड़ना मुझको पड़ा है प्रेम पारावार मेरा !!!
पाँव मेरे,चाल पर फिर बेड़ियाँ जग क्यों लगाए
स्वप्न के मासूम पंछी नैन वन से क्यों उड़ाए
भाव के कितने अभावों की अधिकता जी रही हूँ
जो कभी भी मैं नहीं थी आज बिलकुल मैं वही हूँ
पास मेरे रत्न के अनगिन जड़े हैं हार फिर भी
अश्रुओं के मोतियों से हो रहा शृंगार मेरा!
दूर ये धरती गगन से पर मिलन कब है अधूरा?
बारिशों के रूप में मिलता रहा है प्रेम पूरा
क्या मरा है एक भी चातक जलद का नाम लेकर ?
प्यास की वो हर तपस्या पूर्ण होती बूँद पीकर
चाहता था जो हमेशा हर किसी को वो मिला है
खो गया क्यों बस यहाँ पर प्रेम का उपहार मेरा !
कवियत्री :- अंकिता सिंह जी
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