🙏गिद्धराज जटायु🙏
कैसे सम्मुख हुए जटायु, जबकि शत्रु प्रबल था
क्योंकि आत्मबल गीद्धराज के जीवन में भी प्रबल था।।
प्रकृति के प्राणियों की, त्यागीयों से प्रीत होती है
और जिनका चरित्र है उज्जवल उन्हीं की जीत होती है।।
अब चाह सनेही सनेह की नहीं, सनेह में घी को जला चुका हूं।
बुझने कि मुझे प्रवाह नहीं, पथ सैकड़ों को दिखला चुका हूं।।
“अति घायल दोऊ कटे पखुना ।
रटना तऊ पै रट लाती रही “
“तन पीर अधीर परे तबहूं ।
हरिनाम की पीृति सुहाती रही ।।
रघुनाथ दशा लखि के तहि की ।
केहि के उमगै बिनु छाती रही ।।
गति गीध की देख दयानिधि को ।
सुध सीय के शोध की जाती रही ।।
गदगद् होई बोले प्रभु , मैं ही हूँ वह राम ।
भक्तराज देखो तुम्हें करता राम प्रणाम ।।
गीध को गोद में राखि दयानिधि
नैन सरोंजन से बरि बारी ।
बारिंह बार सम्हारत पंख ।
जटायु की धूरि जटाओं से झारी ।।
🙏पुज्य संत श्री राजेश्वरानंन्द जी महाराज🙏
कैसे सम्मुख हुए जटायु, जबकि शत्रु प्रबल था
क्योंकि आत्मबल गीद्धराज के जीवन में भी प्रबल था।।
प्रकृति के प्राणियों की, त्यागीयों से प्रीत होती है
और जिनका चरित्र है उज्जवल उन्हीं की जीत होती है।।
अब चाह सनेही सनेह की नहीं, सनेह में घी को जला चुका हूं।
बुझने कि मुझे प्रवाह नहीं, पथ सैकड़ों को दिखला चुका हूं।।
“अति घायल दोऊ कटे पखुना ।
रटना तऊ पै रट लाती रही “
“तन पीर अधीर परे तबहूं ।
हरिनाम की पीृति सुहाती रही ।।
रघुनाथ दशा लखि के तहि की ।
केहि के उमगै बिनु छाती रही ।।
गति गीध की देख दयानिधि को ।
सुध सीय के शोध की जाती रही ।।
गदगद् होई बोले प्रभु , मैं ही हूँ वह राम ।
भक्तराज देखो तुम्हें करता राम प्रणाम ।।
गीध को गोद में राखि दयानिधि
नैन सरोंजन से बरि बारी ।
बारिंह बार सम्हारत पंख ।
जटायु की धूरि जटाओं से झारी ।।
🙏पुज्य संत श्री राजेश्वरानंन्द जी महाराज🙏
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