!!भजन!!
मन मतवाले सोच जरा क्या देख लुभाया दुनिया में,
जो भी आया उसने जीवन व्यर्थ गंवाया दुनिया में....
योनि अनेको में भटका तब तरह तरह का कष्ट सहा,
रक्त माँस मल और मूत्र में मातु गर्भ के बीच रहा,
नौ महिने तक नरक भोगकर नरतन पाया दुनिया में.... जो भी आया... ..
बचपन की अग्यान अवस्था बीती हंसने रोने में,
कभी रूठना कभी मचलना कभी जागने सोने में,
बालापन का सार यही बस खेला खाया दुनिया में...
जो भी आया....
आयी जवानी ब्याह हुआ तब नारी से चित जोड़ लिया,
जिसने तुझको जनम दिया तूने साथ उन्ही का छोड़ दिया,
मातु पिता की दाया का ये बदला चुकाया दुनियां में...
जो भी आया.....
उम्र ढली क्रशकाय हुआ पर तृष्णा दिन दिन अधिक बढ़ी,
पुत्र मित्र परिवार आदि की प्रबला शक्ति शीश चढी,
मानव तन का सार है क्या ये समझ न पाया दुनिया में..
जो भी आया.....
अपना जिसे '' राजेश '' कहा तू हाय उन्ही से छला गया,
मुट्ठी बांधे आया था हाथ पसारे चला गया,
नियम यही जो फूल खिला इक दिन मुर्झाया दुनिया में....
जो भी आया दुनिया में..... राम सिया राम सिया राम..
🙏परम पूज्य महाराज श्री राजेश्वरानंन्द जी🙏
मन मतवाले सोच जरा क्या देख लुभाया दुनिया में,
जो भी आया उसने जीवन व्यर्थ गंवाया दुनिया में....
योनि अनेको में भटका तब तरह तरह का कष्ट सहा,
रक्त माँस मल और मूत्र में मातु गर्भ के बीच रहा,
नौ महिने तक नरक भोगकर नरतन पाया दुनिया में.... जो भी आया... ..
बचपन की अग्यान अवस्था बीती हंसने रोने में,
कभी रूठना कभी मचलना कभी जागने सोने में,
बालापन का सार यही बस खेला खाया दुनिया में...
जो भी आया....
आयी जवानी ब्याह हुआ तब नारी से चित जोड़ लिया,
जिसने तुझको जनम दिया तूने साथ उन्ही का छोड़ दिया,
मातु पिता की दाया का ये बदला चुकाया दुनियां में...
जो भी आया.....
उम्र ढली क्रशकाय हुआ पर तृष्णा दिन दिन अधिक बढ़ी,
पुत्र मित्र परिवार आदि की प्रबला शक्ति शीश चढी,
मानव तन का सार है क्या ये समझ न पाया दुनिया में..
जो भी आया.....
अपना जिसे '' राजेश '' कहा तू हाय उन्ही से छला गया,
मुट्ठी बांधे आया था हाथ पसारे चला गया,
नियम यही जो फूल खिला इक दिन मुर्झाया दुनिया में....
जो भी आया दुनिया में..... राम सिया राम सिया राम..
🙏परम पूज्य महाराज श्री राजेश्वरानंन्द जी🙏
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