बुधवार, 11 सितंबर 2019

!!भजन!!
काया कुटिया निराली जमाने भर से,
दस दरवाजे वाली, जमाने....
सबसे सुन्दर आंख की खिड़की, जिसमे पुतली काली
जमाने भर से....
सुनते श्रवण नासिका सून्घे,वाणी करे बोला चाली
जमाने भर से.....
मुख के भीतर रहती रसना, षट् रस स्वादो वाली
जमाने भर से....
लेना देना कर करते,  पग चाल चले मतवाली
जमाने भर से.....
सर्दी गरमी कड़ा मुलायम ,त्वचा जानने वाली
जमाने भर से......
काम क्रोध मद लोभ आदि से बुद्धि करे रखवाली
जमाने भर से....
इस कुटिया का नित्य किराया, स्वान्स चुकाने वाली
जमाने भर से.....
करि के संग इन्द्रियों का मन बन बैठा जन्जाली
जमाने भर से.....
जन '' राजेश '' मोह मत करना, करना पड़ेगी ये खाली
जमाने भर से...... काया कुटिया निराली जमाने भर से...

🙏परम पूज्य महाराज श्री राजेश्वरानंन्द जी🙏

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