सोमवार, 31 दिसंबर 2018

मिलकर बैठो..
आओ हम कुछ प्यार की बातें करें,
हो चुका जिक्र-ए-जहां अब यार की बातें करें
गले पड़ने से तो अच्छा है कि लग जाओ गले,
छोड़कर तकरार अब त्यौहार की बातें करें
जिस्म देकर जिस्म के संग जिसने जान-ओ-दिल दिया,
हम तो दिल से अब उसी दिलदार की बातें करें
राजेश जिनको मिल चुका उनकी मोहब्बत का मजा,
वो क्यों किसी से बैठकर बेकार की बातें करें
🙏🙏🏻😌🙏🏻🙏

मंगलवार, 20 नवंबर 2018

कविता:- बलिदान रहेगा सदा अमर, मरदानी लक्ष्मीबाई का
(1) निर्जला शुष्क सी धरती पर, मानवता जब कुम्भलाती है
जब घटा टोप अंधीयारों में स्वतंत्र घड़ी अकुलाती है
जब नागफनी को पारिजात के, सदृश्य बताया जाता है
जब मानव को दानव होने का बोध कराया जाता है
जब सिंहनाद की जगह, सिंघालों की आवाजें आती हैं -2
जब कोओं के आदेशों पर कोयलें बाध्य हो गाती हैं
जब अनाचार की परछाई सुविचार घटाने लगती है,
जब कायरता बनकर मिसाल मन को तड़पा ने लगती है
तब धर्म युद्ध के लिए हमेशा, शस्त्र उठाना पड़ता है -2
देवी हो अथवा देव रूप धरती पर आना पड़ता है
हर कोना भरा वीरता से, इस भारत की अंगनाई का -2
बलिदान रहेगा सदा अमर मरदानी लक्ष्मीबाई का

(2) गोरों की सत्ता के आगे, थे जब वीरों के झुके भाल
झांसी पर संकट छाया तो जल उठी सूर्य की महाज्वाल
अबला कहते थे लोग जिसे, जब पहली बार सबल देखी
भारत क्या पूरी दुनिया ने नारी की शक्ति प्रबल देखी
लेकर कृपाण संकल्प किया-2, निज धरा नहीं बटने दूंगी
मेरा सिर चाहे कट जाए अस्तित्व नहीं घटने दूंगी
पति परम धाम को चले गए, मैं हिम्मत कैसे हारूंगी
मर जाऊंगी समरांगण में या तो गैरों को मारूंगी
त्यागे श्रंगार अवस्था के(22), रण के आभूषण धार लिए
जिन हाथों में कंगन खनके उन हाथों में हथियार लिए
शिशु पृष्ठ भाग पर बांध लिया2-3, बलिगायें सादी दातों में
फिर घोटक पर होकर सवार, गहलिए खड़ग निज हाथों में
जब तक मही🌍  शेष 🐍 सीस पर है, है उदाहरण तरुणाई का
बलिदान रहेगा सदा अमर, मरदानी लक्ष्मीबाई का

(3) गौरों की सेना पर रानी, दावानल बनकर छाई थी-2
रणचंडी ने खप्पर भरकर तब अपनी प्यास बुझाई थी
उड़ चला पवन के वेग पवन, बादल बादल बन बरस गया
चपलासम तलवारे चमक उठी दुश्मन पानी को तरस गया
रण बीच अकेली डटी रही-2, साहस के तब पौबारे थे
दुश्मन से बाजी जीत गए पर हम अपनों से हारे थे-2
त्रेता में पद-लोलूप होकर, भाई को जब मरवाता है
द्वापर में राज्य हड़पने को जब महायुद्ध हो जाता है
सत्ता को अक्षुण्ण रखने का-2, जब लोभ-मोह जग जाता है
तब गद्दारी का कुटिल दाग उसके माथे लग जाता है
इतिहास साक्षी बन जाता है-2, हर अकथनीय सच्चाई का
बलिदान रहेगा सदा अमर, मरदानी लक्ष्मीबाई का ||

       कवियत्री:- कविता तिवारी

रविवार, 18 नवंबर 2018

श्री राधा हमारी गोरी गोरी नवल किशोरी कन्हैया तेरो तारे है
श्री राधा हमारी गोरी गोरी, के नवल किशोरी, कन्हैया तेरो कारो है।
यो तो कालो नहीं है मतवारो, जगत उज्यारो, श्री राधा जी को प्यारो है॥

श्री श्यामा किशोरी,
गोरे मुख पे तिल बनेओ, ताहि करूँ मैं प्रणाम।
मानो चन्द्र बिछाई के पौढ़े सालगराम॥

राधे तू बडभागिनी, कौन तपस्या कीन,
तीन लोक का रणतरण वो तेरे आधीन॥

कीर्ति सुता के पग पग में प्रयागराज,
केशव की केलकुंज कोटि कोटि काशी है।
यमुना में जगनाथ रेणुका में रामेश्वर,
थर थर पे पड़े रहें अयोध्या के वासी हैं।
गोपीन के द्वार द्वार हरिद्वार वसत यहाँ,
बद्री केदारनाथ फिरत दास दासी हैं।
सवर्ग अपवर्ग सुख लेकर हम करें कहाँ,
जानते नहीं हम वृन्दावन वासी हैं॥

योगी जन जान पाते है ना जिस का प्रभाव,
जिस की कला का पार शारदा न पाती है।
नारद आदि ब्रहम वादीओ ने भी न पाया तत्व,
दिव्य दिव्य शक्तियां भी नित्य गुण गातीं हैं।
शंकर समाधी में ढुंढते हैं जिसको,
श्रुतियां भी नेति नेति कह हार जातीं हैं।
वो नाना रूप धारी विष्णु मोहन मुरारी,
उस विष्व के मदारी को गोपियाँ नाचतीं हैं॥

श्याम तन श्याम मन श्याम ही हमारो धन,
आठों याम उधो हमें श्याम ही सो काम है।
श्याम हिये श्याम जीय श्याम बिनु नहीं पिय,
अंधे की सी लाकडी आधार श्याम नाम है।
श्याम गति श्याम मति श्याम ही है प्रानपति,
श्याम सुखधाम सो भलाई आठो याम है।
उधो तुम भये भोरे पाती ले के आये दोड़े,
योग कहाँ राखें यहाँ रोम रोम श्याम है॥

गवार से राजकुमार भये, जब भानु के द्वार लो आन लगें हैं।
बंसरी की उभरी है कला, जब किरिती किशोरी के गाने लगें हैं।
राधिका के संग फेरे पड़े, तब से कहना इतराने लगें हैं॥

हमरी राधा की कौन करे होड़,
सुनो रे प्यारे नन्द गईया।

राधा हमारी भोरी भारी,
यो तो छलिया माखन चोर।

देखो तेरे कनुआ की छतरी पुराणी,
वा की छतरी की कीमत करोड़।

चार टके की तेरी कारी कमरिया,
या की चुनरी की कीमत करोड़।

देखो तेरे कनुआ को मुकुट झुको है,
हमरी राधा के चरनन की और।

ब्रजमंडल के कण कण में बसी तेरी ठकुराई।
कालिंदी की लहर लहर ने, तेरी महिमा गाई॥
पुलकत हो तेरा यश गावे, श्री गोवर्धन गिरिराई।
ले ले नाम तेरो मुरली में नाचे कुवर कहनाई॥

शनिवार, 17 नवंबर 2018

कविता:- आँख चल गई
वैसे तो एक शरीफ इंसान हूँ,
आप ही की तरह श्रीमान हूँ,
मगर अपनी आँख से,
बहुत परेशान हूँ।

अपने आप चलती है,
लोग समझते हैं -चलाई गई है,
जान-बूझ कर चलाई गई है,
एक बार बचपन में,
शायद सन पचपन में,
क्लास में ,
एक लड़की बैठी थी पास में,
नाम था सुरेखा,
उसने हमें देखा,
और बाईं चल गई,
लड़की हाय-हाय कहकर,
क्लास छोड़ बाहर निकल गई,
थोड़ी देर बाद
प्रिंसिपल ने बुलाया,
लम्बा-चौड़ा
लेक्चर पिलाया,
हमने कहा कि जी भूल हो गई,
वो बोले-ऐसा भी होता है,
भूल में,
शर्म नहीं आती ऐसी गन्दी हरकतें करते हो,
स्कूल में?


इससे पहले कि हकीकत बयां करते...

और इससे पहले कि,
हकीकत बयां करते,
कि फिर चल गई,
प्रिंसिपल को खल गई,
हुआ यह परिणाम,
कट गया नाम,
बमुश्किल तमाम,
मिला एक काम,
इंटरव्यू में खड़े थे क्यू में,
एक लडकी थी सामने अड़ी,
अचानक मुड़ी,
नज़र उसकी हम पर पड़ी,
और हमारी आँख चल गई,
लड़की उछल गई,
दूसरे उम्मीदवार चौंके,
फिर क्या था,
मार मार जूते-चप्पल
फोड़ दिया बक्कल,
सिर पर पाँव रखकर भागे,
लोगबाग पीछे हम आगे।

घबराहट में घुस गये एक घर में

घबराहट में,
घुस गये एक घर में,
बुरी तरह हाँफ रहे थे,
मारे डर के काँप रहे थे,
तभी पूछा उस गृहणी ने-
कौन?
हम खड़े रहे मौन
वो बोली
बताते हो या किसी को बुलाऊँ ?
और उससे पहले,
कि जबान हिलाऊँ,
आँख चल गई,
वह मारे गुस्से के,जल गई,
साक्षात् दुर्गा- सी दीखी,
बुरी तरह चीखी,
बात कि बात में जुड़ गये अड़ोसी-पडौसी,
मौसा-मौसी, भतीजे-मामा
मच गया हंगामा,
चड्डी बना दिया हमारा पजामा,
बनियान बन गया कुर्ता,
मार मार बना दिया भुरता,
हम चीखते रहे,
और पीटने वाले, हमे पीटते रहे।

भगवान जाने कब तक

भगवान जाने कब तक,
निकालते रहे रोष,
और जब हमें आया होश,
तो देखा अस्पताल में पड़े थे,
डाक्टर और नर्स घेरे खड़े थे,
हमने अपनी एक आँख खोली,
तो एक नर्स बोली,
दर्द कहाँ है?
हम कहाँ कहाँ बताते,
और उससे पहले कि कुछ,कह पाते,
आँख चल गई,
नर्स कुछ न बोली,
बाई गाड ! (चल गई) ,
मगर डाक्टर को खल गई,
बोला इतने सिरियस हो,
फिर भी ऐसी हरकत कर लेते हो,
इस हाल में शर्म नहीं आती,
मोहब्बत करते हुए,
अस्पताल में,
उन सबके जाते ही आया वार्ड बॉय,
देने लगा आपनी राय,
भाग जाएँ चुपचाप नहीं जानते आप,
बढ़ गई है बात,
डाक्टर को गड़ गई है,
केस आपका बिगाड़ देगा,
न हुआ तो मरा बताकर,
जिंदा ही गड़वा देगा.
तब अँधेरे में आँखें मूंदकर,
खिड़की के कूदकर भाग आए,
जान बची तो लाखों पाए।

एक दिन सकारे बापूजी हमारे

एक दिन सकारे,
बापूजी हमारे,
बोले हमसे-
अब क्या कहें तुमसे?
कुछ नहीं कर सकते,
तो शादी कर लो ,
लडकी देख लो
मैंने देख ली है,
जरा हैल्थ की कच्ची है,
बच्ची है फिर भी अच्छी है,

जैसी भी, आखिर लड़की है
बड़े घर की है, फिर बेटा
यहाँ भी तो कड़की है
हमने कहा-
जी अभी क्या जल्दी है?
वे बोले- गधे हो
ढाई मन के हो गये
मगर बाप के सीने पर लदे हो
वह घर फँस गया तो सम्भल जाओगे।

तब एक दिन भगवान से मिलके

तब एक दिन भगवान से मिलके
धडकते दिल से
पहुँच गये रुड़की, देखने लड़की
शायद हमारी होने वाली सास
बैठी थी हमारे पास
बोली-
यात्रा में तकलीफ़ तो नहीं हुई
और आँख मुई चल गई
वे समझी कि मचल गई

बोली-
लड़की तो अंदर है,
मैं लड़की की माँ हूँ ,
लड़की को बुलाऊँ?
और इससे पहले कि मैं जुबान हिलाऊँ,
आँख चल गई दुबारा ,
उन्हों ने किसी का नाम ले पुकारा,
झटके से खड़ी हो गईं।

हम जैसे गए थे लौट आए

हम जैसे गए थे लौट आए,
घर पहुँचे मुँह लटकाए,
पिताजी बोले-
अब क्या फ़ायदा ,
मुँह लटकाने से ,
आग लगे ऐसी जवानी में,
डूब मरो चुल्लू भर पानी में
नहीं डूब सकते तो आँखें फोड़ लो,
नहीं फोड़ सकते हमसे नाता ही तोड़ लो।

जब भी कहीं आते हो,
पिटकर ही आते हो ,
भगवान जाने कैसे चलते हो?
अब आप ही बताइए,
क्या करूँ, कहाँ जाऊँ?
कहाँ तक गुण आऊँ अपनी इस आँख के,
कमबख़्त जूते खिलवाएगी,
लाख दो लाख के,
अब आप ही संभालिये,
मेरा मतलब है कि कोई रास्ता निकालिए।

जवान हो या वृद्धा, पूरी हो या अद्धा
केवल एक लड़की जिसकी आँख चलती हो,
पता लगाइए और मिल जाये तो,
हमारे आदरणीय काका जी को बताइए।
कविता:- कहाँ पर बोलना है
कहाँ पर बोलना है
और कहाँ पर बोल जाते हैं।
जहाँ खामोश रहना है
वहाँ मुँह खोल जाते हैं।

कटा जब शीश सैनिक का
तो हम खामोश रहते हैं।
कटा एक सीन पिक्चर का
तो सारे बोल जाते हैं।

नयी नस्लों के ये बच्चे...

नयी नस्लों के ये बच्चे
जमाने भर की सुनते हैं।
मगर माँ बाप कुछ बोले
तो बच्चे बोल जाते हैं।

बहुत ऊँची दुकानों में
कटाते जेब सब अपनी।
मगर मज़दूर माँगेगा
तो सिक्के बोल जाते हैं।

अगर मखमल करे गलती...

अगर मखमल करे गलती
तो कोई कुछ नहीँ कहता।
फटी चादर की गलती हो
तो सारे बोल जाते हैं।

हवाओं की तबाही को
सभी चुपचाप सहते हैं।
च़रागों से हुई गलती
तो सारे बोल जाते हैं।

बनाते फिरते हैं रिश्ते...

बनाते फिरते हैं रिश्ते
जमाने भर से अक्सर।
मगर जब घर में हो जरूरत
तो रिश्ते भूल जाते हैं।

जहाँ खामोश रहना है

कहाँ पर बोलना है
और कहाँ पर बोल जाते हैं।
जहाँ खामोश रहना है
वहाँ मुँह खोल जाते हैं।

रविवार, 4 नवंबर 2018

     कविता:- जब तक सूरज चंदा चमके तब तक ये हिंदुस्तान रहे
सुपुनीता होकर मनोवृत्ति, उत्तुंग शिखर स्पर्श करें
गुण श्रेष्ठ प्रफुल्लित हो इतने सम्यक हो क्रांति विमर्श करें
उत्फुल्ल रहे हर एक व्यक्ति, पर परम सरलता बनी रहे
शब्दों की अपनी गरिमा हो, अविराम तरलता बनी रहे
हे त्रिभुवन के पत्थूननायक, आपदा प्रबंधन के स्वामी
हम विनीत भाव कर-बद्ध खड़े, हे सर्वेश्वर अंतर्यामी
हे नाथ सनाथ करो सबको, जन-जन हो जाएं निर्विकार
विपल्लवविघोष विध्वंस मिठे, खोलो सबके हित मुख्य द्वार
नित नवकिसलय प्रसून, अति स्वर्णिम विहान रहे
भ्रमरों का जिस पर झूम-झूम, अनु गुंजित मधुरिम गान रहे
आरती भारती की उतरे, अर्पित तन मन धन प्राण रहे
जब तक सूरज चंदा चमके तब तक ये हिंदुस्तान रहे...

सारंग धनुर्धारी भगवन,श्री राम भुवन भय दूर करो
हे चक्रपाणि कर कृपा दृष्टि, छल, दंभ, द्वेष को दूर करो
हे त्रयंबकेश्वर महादेव, हे नीलकंठ अव्ढरदानी
त्रिलोक्य नाथ रोको-रोको, बढ़ रही नित्य प्रति मनमानी
सम्मोहन, मारण, वशीकरण, उच्चाटन मंत्र प्रयुक्त दिखें
जिनके कारण भय व्याप्त हुआ, भयहीन दिखे भयमुक्त दिखे
अरिहंत तुरंत करो कोतुक, रोको अनर्थ की छाया को
मन प्राण सन्न सहमे सकुचे, क्या हुआ मनुज की काया को
अनुरक्ति बढे़ सीमाओं तक, लेकिन विरक्ति का ध्यान रहे
मिट जाए तिमिर अशिक्षा का, भाषित शिक्षा का दान रहे
मानव अर्पित हो राष्ट्रहेतू, पूजित युग-युग अभिमान रहे
जब तक यह सूरज चंदा चमके, तब तक ये हिंदुस्तान रहे...

       🙏 कवियत्री:- कविता तिवारी जी 🙏
    कविता:- 🙏बोलो भारत माता की जय🙏

बिना मौसम ह्रदय कोकिल से भी गूंजा नहीं जाता,
जहां अनुराग पलता है वहां दूजा नहीं जाता
विभीषण राम जी के भक्त हैं, ये जानते सब हैं
मगर जो देशद्रोही हो उसे पूजा नहीं जाता।।

(1) मां धरती धरती है संयम, सहती है खुद पर प्रबल भार
कितने भी कोई जुल्म करे, पर कभी मानती नहीं हार
इस वसुंधरा पर अखिल विश्व, जिसकी भौगोलिक भाषा है
प्रत्येक खंड में सजे देश, उन सब की यह अभिलाषा है
हर एक देश को नाज रहा, सच्चा है अथवा झूठा है
कर्तव्य और उपायों से निर्मित सम्मान अनूठा है
निज आर्यव्रत की ओर ध्यान, आकृष्ट कराने आयी हूँ
कुछ शब्द सुमन वाली कविता स्वागत में चुनकर लाई हूं
अपने अतीत का ज्ञान तत्व हम सबको यह बतलाता है
नीतियां समर्पण वाली हो, इतिहास अमर हो जाता है
चाहे हो कलुषित भार किंतु, दिखला दो अपना सदय ह्रदय
सबसे कर-बद्ध निवेदन है, बोलो भारत माता की जय...

(2) छ: ऋतुओं वाला श्रेष्ठ देश, दुनिया का सबसे ज्येष्ठ देश
अध्ययन करने पर पाओगे, पूरी वसुंधरा पर है विशेष
सभ्यता यहां पर जिंदा है, पूजे जाते हैं संस्कार
कल-कल-कल करती है पावन नदियां ले धवलधार
हिमवान कीरिट बना जिसका, उत्तर में प्रहरी के समान
दक्षिण में सिंधु पखारे चरण, देता रहता है अभयदान
पूर्व में खाड़ी का गौरव, सीमा को रक्षित करता है
पश्चिम में अपना अरब-सिंधु, निज-गुरूता का दम भरता है
त्यौहार अनूठे लगते हैं, व्यवहार अनूठे लगते हैं
खोजो तो पाओगे जवाब, मनुहार अनूठे लगते हैं
ऐसी है भारत की धरती, रहता है जहां जीव निर्भय
सत्ता से यदि हो गई चूक, तो ईश्वर करता है निर्णय
होगा ना बाल बांका हरगिज, कर लोगे यदि मन में निश्चय
सबसे कर बंद निवेदन है बोलो भारत माता की जय...

(3) मजदूर जहां श्रम साधक हैं, उस भूमि भाग का क्या कहना
नित मेहनत का आराधक है, उस भूमि भाग का क्या कहना
बढ़ती ही रहती है प्रतिफल, भारत माता की अमिट शान
पोषित करती है जो संज्ञा, हम सब उसको कहते किसान
दर्शन दर्पण का करो चित्र और भला है चंगा है
लहराता नील गगन पथ पर, वह अपना पूज्य तिरंगा है
तैयार हमेशा रहते हैं, दुश्मन का बर्प मिटाने को
सकुचाते नहीं किशोर यहां, बलिवेदी पर चढ़ जाने को
बचना है चाहे मरना है करना है सिर्फ अखंड अजय
सैनिक सन्नद्ध समर्पित है, संकल्प लिए मन में निश्चय
हम इसे नहीं बटने देंगे, चाहे आ जाए महाप्रलय
सबसे कर बंद निवेदन है, बोलो भारत माता की जय...

             🙏कवियत्री:- कविता तिवारी जी🙏
        कविता:- बेटियाँ 👧🙏👧

नाव सद्काम की सद्वृत्ती से निष्काम खेते हैं,
सदा इतिहास के पन्ने यही पैगाम देते हैं
कभी भूले से यदि नारी सहे अपमान की पीड़ा,
तभी श्री राम के घोड़े लव-कुश थाम लेते हैं।।

(1) जिम्मेदारियों का बोझ परिवार पर पड़ा तो,
ऑटो-रिक्शा, ट्रेन को चलाने लगी बेटियां
साहस के साथ अंतरिक्ष तक भेद डाला,
सुना ! वायुयान भी उड़ाने लगी बेटियां
और कितने उदाहरण ढूंढ कर लाऊं,
हर क्षेत्र शक्ति आजमाने लगी बेटियां
वीर की शहादत पर अर्थी को कांधा देकर,
अब शमशान तक जाने लगी बेटियां-2

(2) घर में बटा हाथ, रहती हैं मां के साथ,
पिता की समस्त बाधा हरती है बेटियां
कटु वाक्य बोलने से पूर्व सोचती हैं खूब,
मन में सहमती हैं,डरती हैं बेटियां
बेटे होते उद्दंड, भले आपका दुखा दे दिल,
कष्ट सहकर भी धैर्य धरती है बेटियां
प्रश्न यह है ज्वलनशील सबके लिए है आज,
नित्य प्रति कोख में क्यों मरती है बेटियां

(3) ललिता, विशाखा, राधा रानी बेटी होती नहीं,
यशोदा दुलारे नंदनंदन नचाता कौन ?
अनुसूया जैसी बेटी तप साधिका ना होती,
पालने में ब्रह्मा,विष्णु, रूद्र को झुलाता कौन ?
जनता जनार्दन बताए एक बात आज,
सावित्री ना होती सत्यवान को बचाता कौन ?
सब कुछ होता पर एक बात सोच लेना,
कविता ना होती तो यह कविता सुनाता कौन?

      🙏कवियत्री कविता तिवारी जी🙏

शनिवार, 27 अक्टूबर 2018

मैं आंखों से आंसू गिराता नहीं हूं,
ये मोती हैं तेरे, यूं ही लुटाता नहीं हुं

हों पत्थर या हीरे या मोती, जवाहरात,
तेरे दर्द से आगे मैं जाता नहीं हूँ

खुदी को मुझे दे दिया उसने जब से,
उसे अब कभी आजमा ता नहीं हूँ

बचाता है वही बलाओं से मुझको,
मैं खुद को कभी भी बचाता नहीं हूँ

मेरा चेहरा वो जब से पढ़ने लगा है,
उसे अब कभी कुछ बताता नहीं हूँ
          🙏आपका देव🙏

मंगलवार, 23 अक्टूबर 2018

श्री सरस्वती वंदना (रवि-रुद्र-पितामह-विष्णु-नुतं )


रवि-रुद्र-पितामह-विष्णु-नुतं, हरि-चन्दन-कुंकुम-पंक-युतम् !
मुनि-वृन्द-गजेन्द्र-समान-युतं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।।

शशि-शुद्ध-सुधा-हिम-धाम-युतं, शरदम्बर-बिम्ब-समान-करम्।
बहु-रत्न-मनोहर-कान्ति-युतं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।। 

कनकाब्ज-विभूषित-भूति-पवं, भव-भाव-विभावित-भिन्न-पदम्।
प्रभु-चित्त-समाहित-साधु-पदं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।। 

भव-सागर-मज्जन-भीति-नुतं, प्रति-पादित-सन्तति-कारमिदम्।
विमलादिक-शुद्ध-विशुद्ध-पदं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।। 

मति-हीन-जनाश्रय-पारमिदं, सकलागम-भाषित-भिन्न-पदम्।
परि-पूरित-विशवमनेक-भवं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।। 

परिपूर्ण-मनोरथ-धाम-निधिं, परमार्थ-विचार-विवेक-विधिम्।
सुर-योषित-सेवित-पाद-तलं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।। 

सुर-मौलि-मणि-द्युति-शुभ्र-करं, विषयादि-महा-भय-वर्ण-हरम्।
निज-कान्ति-विलोमित-चन्द्र-शिवं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।। 

गुणनैक-कुल-स्थिति-भीति-पदं, गुण-गौरव-गर्वित-सत्य-पदम्।
कमलोदर-कोमल-पाद-तलं,तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।।
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रविवार, 21 अक्टूबर 2018

किसी ने कहा वो आते नहीं बड़े बेदर्दी हैं
यूं ही कुछ लोगों ने उसे बेवफा बना रखा है।।

उतरा सागर में जो उसको मोती मिले,
खोज की जो मेरी मुझे पा गया
नुक्ताची, संकावादी को मैं ना मिला,
भिलनी का मुझे भोलापन भा गया।।

तूने मुरत कहा मैं मुरतवान था,
तूने पत्थर कहा मैं तो पाषाण था
यह तो अपने विश्वास की बात है,
धन्ने जट्ट ने बुलाया, मैं झट आ गया।।

प्यार तो प्यार है सीधी सी बात है,
प्यार कब पूछता है कि क्या जात है
चाहे हिंदू हो,सिख हो या हो मुसलमान,
मुझको रसखान सलवार पहना गया।।

तूने हृदय से मुझको बुलाया नहीं,
बिन बुलाए कभी मैं भी आया नहीं
तूने हृदय से मुझको खिलाया नहीं,
मैं तो विदुरायिन के छिलके तक खा गया।।
               🙏राधे राधे🙏

मंगलवार, 25 सितंबर 2018

यहां रहकर मुझे अक्सर, वहां की याद आती है
समझ मैं खुद नहीं सकता, कहां की याद आती है
जहां में रहता हूं लेकिन, नहीं यह राज मैं समझा,
जहां वो कौन सा है, मुझको जहां की याद आती है
अकल उस तक नहीं पहुंची, वहीं पहुंचा अक्ल तक
मुझे मुर्शिद के इस, तर्जे-बयां की याद आती है
दीवाने मिट तो जाते हैं, मगर उल्फत नहीं आती
पतंगे को तो जलकर भी समा की याद आती है
फलक से टूटते तारे, जमीं पर आकर राजेश्वर
और जमीन के आदमी को, आसमा की याद आती है
                   🙏आपका देव🙏
भक्ति जैसों नाथ नहीं, भरत-सो मिलाप नहीं,
सिय-सी ना मात, तीन-लोक काहू ठौर है
सबरी-सों प्रेम नहीं, लक्ष्मण सो नेम नहीं,
हनुमत-सी ना सेवा, जो साधु सिरमौर है
भारत-सो देश नहीं, राम-सो राजेश नहीं,
वेद सो संदेश नहीं, सुग्रीव-सो ना दौर है
गंन्ध-सो ना पानी, महादेव-सो ना दानी,
संत तुलसी की वाणी-सी, ना वानी कहूं और है।।
               🙏आपका देव 🙏

मंगलवार, 28 अगस्त 2018

 कविता:- भला हुआ जो राम कहानी हो गई समय पुराने में

(1) भला हुआ जो राम कहानी हो गई समय पुराने में,
अरे लेने के देने पड़ जाते, जो होती नए जमाने में-2

(2) केवट से राम जो चरण धुलवाते आज,
मायावती दलितों का अपमान मानती
सूपर्नखा की नाक जो काट देते लक्ष्मण,
ममता जरूर नया आंदोलन ठानती
सोने का हिरण रामजी जो मार देते आज,
पशु अत्याचार इसे मेनका बखानती
बिना पासपोर्ट-वीजा लंका जाते हनुमान,
श्रीलंका सरकार केस नया तानती
बजरंगी चक्कर खा जाते, पासपोर्ट बनवाने में
भला हुआ जो राम कहानी हो गई समय पुराने में-2

(3) रावण को छ: माह कांख में दबाता बाली,
मानवाधिकारों का हनन इसे मानते
बूटी के लिए पहाड़ ले आते जो हनुमान,
हिमालय के वासी एक नई राह ठानते
और रावण विभीषण में लात मारता जो आज,
चुनावों में झंडे को विरोध वाले तानते-2
रावण के दस-शीश होते यदि आज यार,
कटिंग के नाई दस गुना धन मांगते
एक हजार रूपया लगते कटिंग सेव कराने में,
भला हुआ जो राम कहानी हो गई समय पुराने में-2

(4) शिव का धनुष टूटने से जो बवाल होता,
फेविकोल उसे मजबूत जोड़ डालता
रावण जोगी का वेष खुद क्यों बनाता आज,
आसाराम से अनेकों जोगी नहीं पालता-2
और सीता जी की खोज की दिशा को जानने के लिए,
वो बूढ़ा जावमंत नेट-गुगल खंगालता
और लंका की लड़ाई पीछे लड़ता सिपाही,
पहले लंका की दीवारों से वो सोने को निकालता
स्विस बैंक में बंदर जुटते, सोना जमा कराने में
भला हुआ जो राम कहानी हो गई समय पुराने में-2

(5) राम की कहानी यदि आज दोहराई जाती,
भाई भाई मैं ये वैर-भाव नहीं होता
और ताड़का सुबाहु उग्रवादी नहीं होते आज,
कोई उग्रवाद विष-बेल नहीं बोता
जनता के ताप, पाप सब मिट जाते आप, 2
राम राज्य में कोई भी भूखा नहीं सोता
राम-नाम सरयू में प्राणी जो लगाता गोता,
राम-नाम जनता के पाप सब धोता-2
आओ हम सब एक जुट जाएं, अब राम राज्य को लाने में
राम कहानी फिर दोहराएं आओ नए जमाने में.....
                     🙏आपका देव🙏

सोमवार, 25 जून 2018

      🔫 कविता:- वीर महाराणा प्रताप🔫

 "नौजवान  जुनून को ना बेड़ियों में बाँधते तो
देश का स्वाभिमान सोता ही नहीं कभी
ईंट का जवाब पत्थर से देना सीख जाते,
बगिया में कोई विष बीज बोता ही नहीं
यदि वक्ष चीर, सूर्य निकला ना होता फिर
अंधकारा अपना वजूद खोता ही नहीं
हमने बगावत के स्वर ना उठाए होते,
 देश अपना कभी स्वतंत्र होता ही नहीं"

(1) गर योद्धा हो तो याद रहे -2
दिल राष्ट्रभक्त आजाद रहे
ना भारत मां की बेटों से ,
अब कोई फरियाद रहे -2
चेहरे पर झलके स्वाभिमान ,
और मन में खुद्दारी रखना-2
यह जंग शुरू की है तुमने तो जंग सदा जारी रखना

(2) मन में है अंतर द्वंद कड़ा, सम्मुख हो पाए यह प्रश्न खड़ा
दिल शायद तय ना कर पाए, परिवार बड़ा या देश देश बड़ा-2
भावुक क्षण में भी बलिदानी, परिपाटी राणा दिखलाते
तो अकबर से समझौते की, मन में फिर कभी नहीं लाते

(3) कौन हो जो मुझको बताते मेरा धर्म आप
सोचिए कि शत्रु से लड़ूँ तो किसके लिए .?
और मुझको मिला है गढ़ने का वक्त आज
किंतु इतिहास भी गढूँ तो किसके लिए
परिवार जूझता हो भूख से तो बोलिएगा.?
आखिर मैं युद्ध भी लड़ूँ तो किसके लिए
भूखे बच्चे रोते तो, तुम कैसे धीरज रख पाते.?
तो अकबर से समझाते की, मन में फिर कभी नहीं लाते
मन में है अंतर द्वंद कड़ा...

जबाव....

(4) पूछते तो सुनो, राजवंश को बचाने हेतु
 देशभक्तों द्वारा जो चली गई वो चाल हूँ
 परिवार के निमित्त शस्त्र त्याग दें प्रताप
सामने खड़ा हुआ मैं, आपके सवाल हूं
चंदन हूं गर्व का, मेवाड़ त्याग का प्रतीक,
देशभक्तों के लिए मैं आरती का थाल हूं
लाल खुद का ही, जिसने करा दिया हलाल
उसी बलिदानी पन्ना धाय मां का लाल हूं
साहस,त्याग, पराक्रम क्या.?  यदि बच्चों को भी समझाते -2
तो अकबर से समझौते की मन में फिर कभी नहीं लाते
मन में है अंतर द्वंद कड़ा...

(5) यदि आप सुरवीर हो तो क्या नहीं है बात
 वक्त आता है तो खुद शौर्य को जगाते सब,
हृदय में जोश भरने को जय एकलिंग,
और जय भवानी नारे गाते सब
शौर्यवान है तो युद्ध कौशल दिखाते सब
बात परिवार की तो छोड़ दीजिए प्रताप,
मातृभूमि हेतू प्राण दान पर लगाते सब
दिखलाना योद्धा जिसके, ना होते हों रिश्ते नाते -2
तो अकबर से समझौते की, दिल में कभी नहीं लाते
मन में है अंतर द्वंद कड़ा ...

(6) ठीक बोलते हैं आप, मन में हो साहस तो,
पथ शूरवीर का तो कड़ा तो, कोई भी नहीं
धन के निमित्त जिंदगी का खेलते हैं दाव,
 किंतु यहां स्वर्ण में जड़ा तो कोई भी नहीं
 चाहते हैं सब ये कि, जीत ले समूचा विश्व
 लेकिन स्वयं से लड़ा तो कोई भी नहीं
सच तो यही है बंधु, सारी दुनिया में
देश और स्वाभिमान से बड़ा कोई भी नहीं -2

           कवि:- श्री मनवीर मधुर(मथुरा)

          💪कविता:- भारतीय सैनिक की विशेषता💪

शुरू से आज तक इतिहास देता यह गवाही है,
हमारी वीरता मृत्युंजयी है, शौर्य व्याही है
अलग से ना वो लोहा है, ना पत्थर है, ना शोला है
सभी का सम्मिलित प्रारूप, वो एक सिपाही है ।।

(1)  चुन-चुन के जिन्हे सहज के ना रखा जाने,
कितने अमूल्य हीरे भारती के खो गए
देकर बलिदान खुद हो गए अमर किंतु,
वे समस्त भारत को शोक में डूबो गए
सारा देश उनका ऋणी रहेगा, वीरता से
लड़ते हुए जो मां के आंचल में सो गए
शत-शत बार देश करता प्रणाम उन्हें
वो जो मातृभूमि के लिए शहीद हो गए

(2) बचपन बीता जहां खेला खाया बढ़ा हुआ
आती है क्या याद उस आंचल की छांव की
पात जो खड़क जाते, रात को मैं चौक जाती,
ऐसा लगाे, आहट हो जैसे तेरे पांव की
बात सुत आ रहा है, ये भी लगता है क्योंकि
काग भी लगा रहा है, रट कांव कांव की
लौट के तू आजा, मेरे लाल  तुझे चूम लूं मैं
तुझको पुकार दे ये माटी तेरे गांव की।।-2

           कवि:- श्री मनवीर मधुर(मथुरा)
          🔫कविता:- भारतीय सैनिक🔫

(1) भारतीय शेरो, शांति व्रत तोड़ दीजिएगा
शत्रु के लिए विनाशकारी बन जाइये
बाली दूसरों का हक, छीनने की ताक में है
आप श्रीराम से शिकारी बन जाइये
गांधी के अहिंसावादी मूल मानिएगा किन्तु,
बोस जैसे राष्ट्र के पुजारी बन जाइए
देश को है श्याम आज बांसुरी की चाह नहीं -2
वक्त चाहता है चक्रधारी बन जाइए

(2) सैनिकों के शौर्य पे ना कोई प्रश्न चिन्ह
यदि ठान शत्रु को ये जड़ से उखाड़ देते हैं
कोई दो दो हाथ करना भी यदि चाहता तो,
एक बार में ही भूमि पर पछाड़ देते हैं
कोई माया, मातृभूमि पर कुदृष्टि डालता तो
ऐसे आइनों के चेहरे बिगाड़ देते है
वंशज भरत के है, सामने हो सिंह के भी,
खेल-खेल में ही जबड़े को फाड़ देते हैं

(3) देश की जवानी को खोखला किए हुए हैं
कैसे इसके प्रति ये द्वेष मिट जाएगा
फैशन की दौड़ में जो यूँ ही दौड़ते रहे तो,
अपना ही भारतीय वेश मिट जाएगा
अंकुश लगा नहीं, विदेशी सभ्यता पर यदि,
जो भी कुछ शेष है वह भी शेष मिट जाएगा
हम ही युवा है, इस देश का भविष्य
हम ही मिटे तो सारा देश मिट जाएगा।।

       कवि:- श्री मनवीर मधुर(मथुरा)
           👍कविता:- आत्मविश्वास👍

(1) अपने मन में डर का कोई, बीज ना होने देना
स्वयं  संजोया सपना भी, हरगिज मत खोने देना
लक्ष्य तुम्हारे चरण चूमने,  चलकर खुद आएगा
शर्त एक है... अपनी बस, हिम्मत मत खोने देना

(2) स्वयं बुराई से अच्छाई सदा द्वन्द करती है
जिसे समर्थन मिल जाए वह सर बुलंद करती है
मुरझाया चेहरा मत रखना तुमसे लोग कटेंगे -2
खिले हुए फूलों को ही दुनिया पसंद करती है

(3) जब वह संयम को त्याग, कभी हम क्रोध किया करते हैं
तब अंतस में कितने ही, महाकाल जिया करते हैं
मुनि अगस्त की परंपरा के, हम हैं जीने वाले -2
एक चुल्लू में सारा सागर, सोख लिया करते हैं

(4) किसी अंधे को जो यदि रेवड़ियाँ सौप दोगे
अपनों में बांटने की आदत ना जाएगी
जिसने कभी भी शास्त्र ज्ञान प्राप्त ना किया हो
बकवास छाटने की आदत ना जाएगी
बचपन से ही झूठ बोलना सीखा,
हर बात से ही नाटने की आदत ना जाएगी
कितने ही भोग आप कुत्तों को लगाएं किंतु,
झुटन को चाटने की आदत न जाएगी

(5) अंहकार जब सर चढ़ बोलने लगेगा
कुछ लोग हैं जो, आपको भी नहीं मानेंगे
ईश्वर से चाहे मिले, वरदान या कि फिर
ईश्वरीय अभिशाप को भी नहीं मानेंगे
हरदम करते रहेंगे पाप पर पाप,
पुण्य समझेंगे पाप को भी नहीं मानेंगे
आज श्री राम को, ना मानते ये लोग तो क्या -2
कल अपने भी बाप को नहीं मानेंगे।।

               कवि:- श्री मनवीर मधुर(मथुरा)  

रविवार, 17 जून 2018

                       🙏महाभारत🙏

अपनो की चीखें कण कण से, पाना भी क्या है इस रण से
अर्जुन से श्रेष्ठ धनुर्धर को, ये मोह भला किस कारण से -2
कुरुक्षेत्र बीच कैसे रिश्ते, अंतर्मन स्वयं प्रबुद्ध करो
तुम योद्धा हो योद्धा जैसे गांडीव उठाकर युद्ध करो 

सबका जीवन एक युद्ध भूमि, पग पग पर लड़ना पड़ता है -2
अवरोध मिले लाखों लेकिन, आगे तो बढ़ना पड़ता है
सब कुछ त्यागें हम शांति लिए, तब भी कैसे सो सकते हैं
है जंग सुनिश्चित सबकी ही, पर रूप अलग हो सकते हैं
लेकिन जिसने भी लक्ष्य स्वयं, प्राणों में डाला होता है -2
इतिहास वही गढता जग में, जो हिम्मतवाला होता है
ये ना समझी तो अब बहुत हुई, अब समझ जरा अबबुद्ध करो 
तुम योद्धा हो योद्धा जैसे गांडीव उठाकर युद्ध करो...

यह युद्ध देने उनकी ही है, जिनको तुम अपना कहते हो 
अब भी रिश्तो से मोह शेष, किस भावुकता में रहते हो
यूँ समाधान परिवारों में, हो जाते हैं हंसते गाते 
वे अपना तुम्हें मानते यदि, तो लड़ने कभी नहीं आते 
समझौतों के सभी द्वार बंद, अभिवादन तीरों से होगा
इस युद्ध भूमि में निर्णय तो, केवल समशीरों से होगा 
ये मोह और मायूसी क्यों, अपने तेवर को क्रुद्ध करो
तुम योद्धा हो योद्धा जैसे गांडीव उठाकर युद्ध करो 

हर धर्म-युद्ध में योद्धा का, होता बस रण से नाता है -2
जो शूरवीर रहता तटस्थ, वो अपराधी कहलाता है
तुम धर्मध्वजा के अनुयाई, पर उसका रखवाला मैं हूं -2
तुम केवल अपना कर्म करो, फल तो देने वाला मैं हूं
यह शौर्य भूमि है पार्थ यहां, अपना कर्तव्य निभाओगे
बलिदान हुए तो स्वर्गलोक, जीते यश-वैभव पाओगे
पाप चढ़ा आता सिर पर, रिपू-रथ का पथ अवरूद्ध करो
तुम योद्धा हो योद्धा जैसे गांडीव उठाकर युद्ध करो 
अपनो की चीखें है कण-कण से, पाना भी क्या है इस रण से
अर्जुन से श्रेष्ठ धनुर्धर को, यह मोह भला किस कारण से -2


  •              कवि:- श्री मनवीर मधुर(मथुरा)

शनिवार, 16 जून 2018

              🙏वीर अभिमन्यु🙏

 ना संस्कार में क्षरण रहे, धुंधला ना कोई आचरण रहे,
कोई मां होकर भ्रूण अवस्था में सुंदरतम वातावरण रहे
चूक हुई तो जाने क्या क्या दर्द उठाना पड़ता है,
मुझसे पूछो इसका कितना मूल्य चुकाना पड़ता है
डाल दिया व्यूह तोड़ने की जो कला का बीज,
सोती हुई मुझको जवानी जगानी पड़ी
युद्ध हो रहा हो, कौन योद्धा शांत रहता है,
जोश था तो वीरता की आन निभानी पड़ी
लोहा मान गया, मेरे युद्ध कौशल का विश्व, -2
उंगली सभी को दांतो तले दबानी पड़ी
अंजानी गलती हुई थी आपसे, परंतु
कीमत तो मुझे जान देकर चुकानी पड़ी
जुड़े रहें कमजोर तो पौधे को मुरझाना पड़ता है,
मुझसे पूछो इसका कितना मूल्य चुकाना पड़ता है
ना संस्कार में क्षरण रहे....2

जो भी वक्त ने लिखा था,घटा वही है जिंदगी में,
कहता नहीं कि आप का दुलारा नहीं था
शौर्यपुत्र व्यूह नीति जानते नहीं थे,और
मुझको भी शीश झुकना गवारा नहीं था
युद्ध लड़ने गया वो तेरे गर्भ की ही सीख, -2
कौन कहेगा जवाब में करारा नहीं था
सारे महारथी और तेरा यह अकेला शेर,
मारा तो भले गया, परंतु हारा नहीं था
देख पराक्रम दुश्मन को भी शीश झुकाना पड़ता है
मुझसे पूछो इसका कितना मूल्य चुकाना पड़ता है
ना संस्कार में क्षरण रहे....2

कि व्यूह देखकर मजबूर हो गए थे सब,
मैंने यौवन का जोश झुकने नहीं दिया
भले लावा खोलता रहा हो सबके दिलों में,
हौसले को यूंही झुकने नहीं दिया
नहीं पिता को पत्र ने संभाली कमान -2
बढ़ता विजय रथ रूकने नहीं दिया
मार ही दिया अधर्म के धुरंधरों ने किंतु,
शीश धर्मराज का झूकने नहीं दिया
उम्र नहीं वीरों को अपना शौर्य दिखाना पड़ता है,
मुझसे पूछो इसका कितना मूल्य चुकाना पड़ता है
ना संस्कार में क्षरण रहे....2

पक्षधर हो चुके अधर्मना और अनीति के जो,
पैरों तले उनके जमीन हिला देता मैं
चाहे तेरे गर्भ में मिला अधूरा ज्ञान किन्तु,
ध्वस्त कर विरोधियों का किला देता मैं
कितने ही बलशाली अनुभवों की फौज,
खाक में सभी का अहंकार मिला देता मैं
एक-एक कर यदि लड़ते महारथी तो,
सभी को छटी का दूध याद दिला देता मैं
यौद्धा यदि सड़यंन्त्र करे, अन्ततः दहल जाना पड़ता है,
मुझसे पूछो इसका कितना मुल्य चुकाना पड़ता है
ना संस्कार में क्षरण रहे....2

शौर्य ग्रन्थ रचते पिता जो स्वर्ण अक्षरों में,
उसमें नवीन एक प्रष्ठ जोड़ देता मैं
यानी हम से जो दुश्मनी किए हुए हैं भला,
आप ही बताएं उन्हें कैसे छोड़ देता मैं
साहसी, पराक्रमी परंपरा निभाते हुए,
नींबूओं सा शत्रुदल को निचोड़ देता मैं
सुनते हुए कहानी आप यदि सोती नहीं,
आप की कसम चक्रव्युह तोड़ देता मैं
अनजाने गलती पर, सदियों तक पछताना पड़ता है
मुझसे पूछो इसका कितना मूल्य चुकाना पड़ता है
ना संस्कार में क्षरण रहे....2

           कवि:- श्री मनवीर मधुर(मथुरा)
                  ⛳ भारत⛳

यहां पर किसान मोती बोता, यहां शिशु बन कर इश्वर रोता
हिमराज हिमालय मुकुट स्वयं, सागर सम्राट चरण धोता।
भारत-भू यहां पर निकली गीता ईश्वर की वाणी से
यहां पापी पावन होता है, गंगा के निर्मल पानी से
यहां पर किसान मोती बोता......2

अद्भुत देश, अद्भुत त्याग की मिसाल
कब,कौन, क्या व किसका काज त्याग देता है
त्याग के समाज को फकीर बन जाता कोई,
और किसी को यहां समाज त्याग देता है
वामन जो भगवान होकर भूमि मांगते हैं,
ध्रुव राजपुत्र होकर राज त्याग देता है
एक महाभारत है, भाइयों में ताज हेतु,
एक भाई राम हेतु ताज त्याग देता है
जन्मे इस धरती ने कितने, लाल भरत बलिदानी से,
यहां पापी पावन होता है गंगा के निर्मल पानी से
यहां पर किसान मोती बोता......2

शक्ति का प्रमाण रानी दुर्गावती रही तो,
अक्खड़ कबीर अभिव्यक्ति का प्रमाण है
अभिव्यक्ति ऐसी जो प्रमाण निर्भीकता का,
ध्रुव-सा चरित्र जो विरक्ति का प्रमाण है
थी विरक्ति महावीर जैसे यदि भारत में,
पन्नाधाय मां भी राज-भक्ति का प्रमाण है
थरथर कांप गया दुश्मन झांसी वाली मर्दानी से,
यहां पापी पावन होता है गंगा के निर्मल पानी से
यहां पर किसान मोती होता.....2

भारतीय नारी का चरित्र देखिएगा मित्र,
उन्नत जो कर देश का ललाट देती है
झांसी वाली रानी ने निज शौर्य दिखलाते हुए,
रणभूमि शत्रु के शवों से पाट देती है
जिस पत्नी के मोह में जो भटके, वो खुद
खोल पति के बुद्धि के कपाट देती है
रत्ना दिखाती राह दास तुलसी को ,
और हाणी रानी अपना ही शीश काट देती है
सारा विश्व करे तुलना बलिदानी हाणी रानी से
यहां पापी पावन होता है गंगा के निर्मल पानी से
यहां पर किसान मोती बोता.....2

जीते-जी यहां पर इतिहास गढतें हैं,
और मरकर अमर कहानी बन जाते हैं
इस भूमि पर दधिचि देवों की सुरक्षा हेत,
हड्डियों को देके महादानी बन जाते हैं
भारत की माटी ही विलक्षण है जिसे चाट,
कान्हा खुद ईश्वर के मांनी बन जाते हैं
उद्धव से ज्ञानी यहां मूर्ख बन जाते,
और कालिदास जैसे मूर्ख ज्ञानी बन जाते हैं
पानी-पानी ज्ञान हुआ यहां उलझ प्रेम पटरानी से,
यहां पापी पावन होता है गंगा के निर्मल पानी से
यहां पर किसान मोती बोता....2


🙏अमीरी की तो ऐसी की ...ऐसी की
अपना घर लुटा बैठे😌
और फकीरी की तो ऐसी की😍
कि उसके घर मेंकि उसके घर मेंउसके घर में जा बैठे🙏

                    कवि :- श्री मनवीर मधुर जी (मथुरा)
    😌फिर मेरी याद😍

फिर मेरी याद आ रही होगी
फिर वो दीपक बुझा रही होगी
फिर मेरे Facebook पर आकर वो
खुद को बैनर बना रही होगी
फिर मेरी याद आ रही होगी....2

अपने बेटे का चूम कर माथा
मुझको टीका लगा रही होगी
फिर मेरी याद आ रही होगी....2

फिर उसी ने उसे छुआ होगा
फिर उसी से निभा रही होगी
फिर मेरी याद आ रही होगी....2

जिस्म चादर सा बिछ गया होगा
रूह सलवट हटा रही होगी
फिर मेरी याद आ रही होगी....2

फिर से एक रात कट गई होगी
फिर से एक रात आ रही होगी
फिर मेरी याद आ रही होगी
फिर वो दीपक बुझा रही होगी....2

       कवि :- कुमार विश्वास
हार गया तन-मन पुकार कर तुम्हें
कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें

जिस पल हल्दी लेपी होगी तन पर माँ ने
जिस पल सखियों ने सौंपी होंगीं सौगातें
ढोलक की थापों में, घुँघरू की रुनझुन में
घुल कर फैली होंगीं घर में प्यारी बातें

उस पल मीठी-सी धुन
घर के आँगन में सुन
रोये मन-चैसर पर हार कर तुम्हें
कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें

कल तक जो हमको-तुमको मिलवा देती थीं
उन सखियों के प्रश्नों ने टोका तो होगा
साजन की अंजुरि पर, अंजुरि काँपी होगी
मेरी सुधियों ने रस्ता रोका तो होगा

उस पल सोचा मन में
आगे अब जीवन में
जी लेंगे हँसकर, बिसार कर तुम्हें
कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें

कल तक मेरे जिन गीतों को तुम अपना कहती थीं
अख़बारों मेें पढ़कर कैसा लगता होगा
सावन को रातों में, साजन की बाँहों में
तन तो सोता होगा पर मन जगता होगा

उस पल के जीने में
आँसू पी लेने में
मरते हैं, मन ही मन, मार कर तुम्हें
कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें

हार गया तन-मन पुकार कर तुम्हें
कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें

बुधवार, 7 फ़रवरी 2018

चांद औरों पर मरेगा, क्या करेगी चांदनी
प्यार में पंगा करेगा, क्या करेगी चांदनी ?

चांद से हैं खूबसूरत भूख में दो रोटियां,
कोई बच्चा जब मरेगा, क्या करेगी चांदनी ?

डिग्रियां हैं बैग में, पर जेब में पैसे नहीं
नौजवां फाके करेगा, क्या करेगी चांदनी ?

लाख तुम फसलें उगा लो, एकता की देश में
इसको जब नेता चरेगा, क्या करेगी चांदनी ?

जो बचा था खून वो तो सब सियासत पी गई
खुदकुशी खटमल करेगा, क्या करेगी चांदनी ?

दे रहे चालीस चैनल नंगई आकाश से
चांद इसमें क्या करेगा, क्या करेगी चांदनी ?

चांद ऐसा लग रहा ज्यों फांक हो तरबूज की
पेट में राहू धरेगा, क्या करेगी चांदनी ?

क्या करेगा पूर्णिमा का चांद तेरे वास्ते
आगरा भर्ती करेगा, क्या करेगी चांदनी ?

लीडरों पर मत लिखो तुम, बाद में पछताओगे
जब वही नेता मरेगा, क्या करेगी चांदनी ?

सांड है पंचायत ये, मत कहो नेता इसे
देश को पूरा चरेगा, क्या करेगी चांदनी ?

एक बुलबुल कर रही है, आशिकी सय्याद से
शर्म से माली मरेगा, क्या करेगी चांदनी ?

रोज ड्यूटी दे रहा है, एक भी छुट्टी नहीं
सूर्य को जब फ्लू धरेगा, क्या करेगी चांदनी ?

गौर से देखा तो पाया प्रेमिका के मूंछ थी
अब ये 'हुल्लड़' क्या करेगा, क्या करेगी चांदनी ?

पेड़ के नीचे पड़ा है एक गंजा छांव में
नारियल सर पर झरेगा, क्या करेगी चांदनी ?

नोट नेता ने विदेशी बैंक में भिजवा दिए
आयकर अब क्या करेगा, क्या करेगी चांदनी ?

कैश में दस लाख खींचे पार्टी से खर्च को
पांच ये घर पर धरेगा,  क्या करेगी चांदनी ?

मुफलिसी में एक शायर, भीख मांगेगा नहीं
भूख से चाहे मरेगा, क्या करेगी चांदनी ?

ईश्वर ने सब दिया पर, आज का ये आदमी
शुक्रिया तक न करेगा, क्या करेगी चांदनी ?

धन अगर इसने बताया पार्टी के कोष का
ये तो सबको ले मरेगा, क्या करेगी चांदनी ?

माल जो अंदर किया है, इन लुटेरे लीडरों ने
वक्त सब बाहर करेगा, क्या करेगी चांदनी ?

एक शायर पी पिलाकर मंच पर ही सो गया
जब ये खर्राटे भरेगा, क्या करेगी चांदनी ?

एक रचना को कहा था बीस कविता पेल दी
ऊब कर श्रोता मरेगा, क्या करेगी चांदनी ?
                    🙏आपका देव 🙏