🙏वीर अभिमन्यु🙏
ना संस्कार में क्षरण रहे, धुंधला ना कोई आचरण रहे,
कोई मां होकर भ्रूण अवस्था में सुंदरतम वातावरण रहे
चूक हुई तो जाने क्या क्या दर्द उठाना पड़ता है,
मुझसे पूछो इसका कितना मूल्य चुकाना पड़ता है
डाल दिया व्यूह तोड़ने की जो कला का बीज,
सोती हुई मुझको जवानी जगानी पड़ी
युद्ध हो रहा हो, कौन योद्धा शांत रहता है,
जोश था तो वीरता की आन निभानी पड़ी
लोहा मान गया, मेरे युद्ध कौशल का विश्व, -2
उंगली सभी को दांतो तले दबानी पड़ी
अंजानी गलती हुई थी आपसे, परंतु
कीमत तो मुझे जान देकर चुकानी पड़ी
जुड़े रहें कमजोर तो पौधे को मुरझाना पड़ता है,
मुझसे पूछो इसका कितना मूल्य चुकाना पड़ता है
ना संस्कार में क्षरण रहे....2
जो भी वक्त ने लिखा था,घटा वही है जिंदगी में,
कहता नहीं कि आप का दुलारा नहीं था
शौर्यपुत्र व्यूह नीति जानते नहीं थे,और
मुझको भी शीश झुकना गवारा नहीं था
युद्ध लड़ने गया वो तेरे गर्भ की ही सीख, -2
कौन कहेगा जवाब में करारा नहीं था
सारे महारथी और तेरा यह अकेला शेर,
मारा तो भले गया, परंतु हारा नहीं था
देख पराक्रम दुश्मन को भी शीश झुकाना पड़ता है
मुझसे पूछो इसका कितना मूल्य चुकाना पड़ता है
ना संस्कार में क्षरण रहे....2
कि व्यूह देखकर मजबूर हो गए थे सब,
मैंने यौवन का जोश झुकने नहीं दिया
भले लावा खोलता रहा हो सबके दिलों में,
हौसले को यूंही झुकने नहीं दिया
नहीं पिता को पत्र ने संभाली कमान -2
बढ़ता विजय रथ रूकने नहीं दिया
मार ही दिया अधर्म के धुरंधरों ने किंतु,
शीश धर्मराज का झूकने नहीं दिया
उम्र नहीं वीरों को अपना शौर्य दिखाना पड़ता है,
मुझसे पूछो इसका कितना मूल्य चुकाना पड़ता है
ना संस्कार में क्षरण रहे....2
पक्षधर हो चुके अधर्मना और अनीति के जो,
पैरों तले उनके जमीन हिला देता मैं
चाहे तेरे गर्भ में मिला अधूरा ज्ञान किन्तु,
ध्वस्त कर विरोधियों का किला देता मैं
कितने ही बलशाली अनुभवों की फौज,
खाक में सभी का अहंकार मिला देता मैं
एक-एक कर यदि लड़ते महारथी तो,
सभी को छटी का दूध याद दिला देता मैं
यौद्धा यदि सड़यंन्त्र करे, अन्ततः दहल जाना पड़ता है,
मुझसे पूछो इसका कितना मुल्य चुकाना पड़ता है
ना संस्कार में क्षरण रहे....2
शौर्य ग्रन्थ रचते पिता जो स्वर्ण अक्षरों में,
उसमें नवीन एक प्रष्ठ जोड़ देता मैं
यानी हम से जो दुश्मनी किए हुए हैं भला,
आप ही बताएं उन्हें कैसे छोड़ देता मैं
साहसी, पराक्रमी परंपरा निभाते हुए,
नींबूओं सा शत्रुदल को निचोड़ देता मैं
सुनते हुए कहानी आप यदि सोती नहीं,
आप की कसम चक्रव्युह तोड़ देता मैं
अनजाने गलती पर, सदियों तक पछताना पड़ता है
मुझसे पूछो इसका कितना मूल्य चुकाना पड़ता है
ना संस्कार में क्षरण रहे....2
कवि:- श्री मनवीर मधुर(मथुरा)
ना संस्कार में क्षरण रहे, धुंधला ना कोई आचरण रहे,
कोई मां होकर भ्रूण अवस्था में सुंदरतम वातावरण रहे
चूक हुई तो जाने क्या क्या दर्द उठाना पड़ता है,
मुझसे पूछो इसका कितना मूल्य चुकाना पड़ता है
डाल दिया व्यूह तोड़ने की जो कला का बीज,
सोती हुई मुझको जवानी जगानी पड़ी
युद्ध हो रहा हो, कौन योद्धा शांत रहता है,
जोश था तो वीरता की आन निभानी पड़ी
लोहा मान गया, मेरे युद्ध कौशल का विश्व, -2
उंगली सभी को दांतो तले दबानी पड़ी
अंजानी गलती हुई थी आपसे, परंतु
कीमत तो मुझे जान देकर चुकानी पड़ी
जुड़े रहें कमजोर तो पौधे को मुरझाना पड़ता है,
मुझसे पूछो इसका कितना मूल्य चुकाना पड़ता है
ना संस्कार में क्षरण रहे....2
जो भी वक्त ने लिखा था,घटा वही है जिंदगी में,
कहता नहीं कि आप का दुलारा नहीं था
शौर्यपुत्र व्यूह नीति जानते नहीं थे,और
मुझको भी शीश झुकना गवारा नहीं था
युद्ध लड़ने गया वो तेरे गर्भ की ही सीख, -2
कौन कहेगा जवाब में करारा नहीं था
सारे महारथी और तेरा यह अकेला शेर,
मारा तो भले गया, परंतु हारा नहीं था
देख पराक्रम दुश्मन को भी शीश झुकाना पड़ता है
मुझसे पूछो इसका कितना मूल्य चुकाना पड़ता है
ना संस्कार में क्षरण रहे....2
कि व्यूह देखकर मजबूर हो गए थे सब,
मैंने यौवन का जोश झुकने नहीं दिया
भले लावा खोलता रहा हो सबके दिलों में,
हौसले को यूंही झुकने नहीं दिया
नहीं पिता को पत्र ने संभाली कमान -2
बढ़ता विजय रथ रूकने नहीं दिया
मार ही दिया अधर्म के धुरंधरों ने किंतु,
शीश धर्मराज का झूकने नहीं दिया
उम्र नहीं वीरों को अपना शौर्य दिखाना पड़ता है,
मुझसे पूछो इसका कितना मूल्य चुकाना पड़ता है
ना संस्कार में क्षरण रहे....2
पक्षधर हो चुके अधर्मना और अनीति के जो,
पैरों तले उनके जमीन हिला देता मैं
चाहे तेरे गर्भ में मिला अधूरा ज्ञान किन्तु,
ध्वस्त कर विरोधियों का किला देता मैं
कितने ही बलशाली अनुभवों की फौज,
खाक में सभी का अहंकार मिला देता मैं
एक-एक कर यदि लड़ते महारथी तो,
सभी को छटी का दूध याद दिला देता मैं
यौद्धा यदि सड़यंन्त्र करे, अन्ततः दहल जाना पड़ता है,
मुझसे पूछो इसका कितना मुल्य चुकाना पड़ता है
ना संस्कार में क्षरण रहे....2
शौर्य ग्रन्थ रचते पिता जो स्वर्ण अक्षरों में,
उसमें नवीन एक प्रष्ठ जोड़ देता मैं
यानी हम से जो दुश्मनी किए हुए हैं भला,
आप ही बताएं उन्हें कैसे छोड़ देता मैं
साहसी, पराक्रमी परंपरा निभाते हुए,
नींबूओं सा शत्रुदल को निचोड़ देता मैं
सुनते हुए कहानी आप यदि सोती नहीं,
आप की कसम चक्रव्युह तोड़ देता मैं
अनजाने गलती पर, सदियों तक पछताना पड़ता है
मुझसे पूछो इसका कितना मूल्य चुकाना पड़ता है
ना संस्कार में क्षरण रहे....2
कवि:- श्री मनवीर मधुर(मथुरा)
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