रविवार, 4 नवंबर 2018

     कविता:- जब तक सूरज चंदा चमके तब तक ये हिंदुस्तान रहे
सुपुनीता होकर मनोवृत्ति, उत्तुंग शिखर स्पर्श करें
गुण श्रेष्ठ प्रफुल्लित हो इतने सम्यक हो क्रांति विमर्श करें
उत्फुल्ल रहे हर एक व्यक्ति, पर परम सरलता बनी रहे
शब्दों की अपनी गरिमा हो, अविराम तरलता बनी रहे
हे त्रिभुवन के पत्थूननायक, आपदा प्रबंधन के स्वामी
हम विनीत भाव कर-बद्ध खड़े, हे सर्वेश्वर अंतर्यामी
हे नाथ सनाथ करो सबको, जन-जन हो जाएं निर्विकार
विपल्लवविघोष विध्वंस मिठे, खोलो सबके हित मुख्य द्वार
नित नवकिसलय प्रसून, अति स्वर्णिम विहान रहे
भ्रमरों का जिस पर झूम-झूम, अनु गुंजित मधुरिम गान रहे
आरती भारती की उतरे, अर्पित तन मन धन प्राण रहे
जब तक सूरज चंदा चमके तब तक ये हिंदुस्तान रहे...

सारंग धनुर्धारी भगवन,श्री राम भुवन भय दूर करो
हे चक्रपाणि कर कृपा दृष्टि, छल, दंभ, द्वेष को दूर करो
हे त्रयंबकेश्वर महादेव, हे नीलकंठ अव्ढरदानी
त्रिलोक्य नाथ रोको-रोको, बढ़ रही नित्य प्रति मनमानी
सम्मोहन, मारण, वशीकरण, उच्चाटन मंत्र प्रयुक्त दिखें
जिनके कारण भय व्याप्त हुआ, भयहीन दिखे भयमुक्त दिखे
अरिहंत तुरंत करो कोतुक, रोको अनर्थ की छाया को
मन प्राण सन्न सहमे सकुचे, क्या हुआ मनुज की काया को
अनुरक्ति बढे़ सीमाओं तक, लेकिन विरक्ति का ध्यान रहे
मिट जाए तिमिर अशिक्षा का, भाषित शिक्षा का दान रहे
मानव अर्पित हो राष्ट्रहेतू, पूजित युग-युग अभिमान रहे
जब तक यह सूरज चंदा चमके, तब तक ये हिंदुस्तान रहे...

       🙏 कवियत्री:- कविता तिवारी जी 🙏

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