🔫 कविता:- वीर महाराणा प्रताप🔫
"नौजवान जुनून को ना बेड़ियों में बाँधते तो
देश का स्वाभिमान सोता ही नहीं कभी
ईंट का जवाब पत्थर से देना सीख जाते,
बगिया में कोई विष बीज बोता ही नहीं
यदि वक्ष चीर, सूर्य निकला ना होता फिर
अंधकारा अपना वजूद खोता ही नहीं
हमने बगावत के स्वर ना उठाए होते,
देश अपना कभी स्वतंत्र होता ही नहीं"
(1) गर योद्धा हो तो याद रहे -2
दिल राष्ट्रभक्त आजाद रहे
ना भारत मां की बेटों से ,
अब कोई फरियाद रहे -2
चेहरे पर झलके स्वाभिमान ,
और मन में खुद्दारी रखना-2
यह जंग शुरू की है तुमने तो जंग सदा जारी रखना
(2) मन में है अंतर द्वंद कड़ा, सम्मुख हो पाए यह प्रश्न खड़ा
दिल शायद तय ना कर पाए, परिवार बड़ा या देश देश बड़ा-2
भावुक क्षण में भी बलिदानी, परिपाटी राणा दिखलाते
तो अकबर से समझौते की, मन में फिर कभी नहीं लाते
(3) कौन हो जो मुझको बताते मेरा धर्म आप
सोचिए कि शत्रु से लड़ूँ तो किसके लिए .?
और मुझको मिला है गढ़ने का वक्त आज
किंतु इतिहास भी गढूँ तो किसके लिए
परिवार जूझता हो भूख से तो बोलिएगा.?
आखिर मैं युद्ध भी लड़ूँ तो किसके लिए
भूखे बच्चे रोते तो, तुम कैसे धीरज रख पाते.?
तो अकबर से समझाते की, मन में फिर कभी नहीं लाते
मन में है अंतर द्वंद कड़ा...
जबाव....
(4) पूछते तो सुनो, राजवंश को बचाने हेतु
देशभक्तों द्वारा जो चली गई वो चाल हूँ
परिवार के निमित्त शस्त्र त्याग दें प्रताप
सामने खड़ा हुआ मैं, आपके सवाल हूं
चंदन हूं गर्व का, मेवाड़ त्याग का प्रतीक,
देशभक्तों के लिए मैं आरती का थाल हूं
लाल खुद का ही, जिसने करा दिया हलाल
उसी बलिदानी पन्ना धाय मां का लाल हूं
साहस,त्याग, पराक्रम क्या.? यदि बच्चों को भी समझाते -2
तो अकबर से समझौते की मन में फिर कभी नहीं लाते
मन में है अंतर द्वंद कड़ा...
(5) यदि आप सुरवीर हो तो क्या नहीं है बात
वक्त आता है तो खुद शौर्य को जगाते सब,
हृदय में जोश भरने को जय एकलिंग,
और जय भवानी नारे गाते सब
शौर्यवान है तो युद्ध कौशल दिखाते सब
बात परिवार की तो छोड़ दीजिए प्रताप,
मातृभूमि हेतू प्राण दान पर लगाते सब
दिखलाना योद्धा जिसके, ना होते हों रिश्ते नाते -2
तो अकबर से समझौते की, दिल में कभी नहीं लाते
मन में है अंतर द्वंद कड़ा ...
(6) ठीक बोलते हैं आप, मन में हो साहस तो,
पथ शूरवीर का तो कड़ा तो, कोई भी नहीं
धन के निमित्त जिंदगी का खेलते हैं दाव,
किंतु यहां स्वर्ण में जड़ा तो कोई भी नहीं
चाहते हैं सब ये कि, जीत ले समूचा विश्व
लेकिन स्वयं से लड़ा तो कोई भी नहीं
सच तो यही है बंधु, सारी दुनिया में
देश और स्वाभिमान से बड़ा कोई भी नहीं -2
कवि:- श्री मनवीर मधुर(मथुरा)
"नौजवान जुनून को ना बेड़ियों में बाँधते तो
देश का स्वाभिमान सोता ही नहीं कभी
ईंट का जवाब पत्थर से देना सीख जाते,
बगिया में कोई विष बीज बोता ही नहीं
यदि वक्ष चीर, सूर्य निकला ना होता फिर
अंधकारा अपना वजूद खोता ही नहीं
हमने बगावत के स्वर ना उठाए होते,
देश अपना कभी स्वतंत्र होता ही नहीं"
(1) गर योद्धा हो तो याद रहे -2
दिल राष्ट्रभक्त आजाद रहे
ना भारत मां की बेटों से ,
अब कोई फरियाद रहे -2
चेहरे पर झलके स्वाभिमान ,
और मन में खुद्दारी रखना-2
यह जंग शुरू की है तुमने तो जंग सदा जारी रखना
(2) मन में है अंतर द्वंद कड़ा, सम्मुख हो पाए यह प्रश्न खड़ा
दिल शायद तय ना कर पाए, परिवार बड़ा या देश देश बड़ा-2
भावुक क्षण में भी बलिदानी, परिपाटी राणा दिखलाते
तो अकबर से समझौते की, मन में फिर कभी नहीं लाते
(3) कौन हो जो मुझको बताते मेरा धर्म आप
सोचिए कि शत्रु से लड़ूँ तो किसके लिए .?
और मुझको मिला है गढ़ने का वक्त आज
किंतु इतिहास भी गढूँ तो किसके लिए
परिवार जूझता हो भूख से तो बोलिएगा.?
आखिर मैं युद्ध भी लड़ूँ तो किसके लिए
भूखे बच्चे रोते तो, तुम कैसे धीरज रख पाते.?
तो अकबर से समझाते की, मन में फिर कभी नहीं लाते
मन में है अंतर द्वंद कड़ा...
जबाव....
(4) पूछते तो सुनो, राजवंश को बचाने हेतु
देशभक्तों द्वारा जो चली गई वो चाल हूँ
परिवार के निमित्त शस्त्र त्याग दें प्रताप
सामने खड़ा हुआ मैं, आपके सवाल हूं
चंदन हूं गर्व का, मेवाड़ त्याग का प्रतीक,
देशभक्तों के लिए मैं आरती का थाल हूं
लाल खुद का ही, जिसने करा दिया हलाल
उसी बलिदानी पन्ना धाय मां का लाल हूं
साहस,त्याग, पराक्रम क्या.? यदि बच्चों को भी समझाते -2
तो अकबर से समझौते की मन में फिर कभी नहीं लाते
मन में है अंतर द्वंद कड़ा...
(5) यदि आप सुरवीर हो तो क्या नहीं है बात
वक्त आता है तो खुद शौर्य को जगाते सब,
हृदय में जोश भरने को जय एकलिंग,
और जय भवानी नारे गाते सब
शौर्यवान है तो युद्ध कौशल दिखाते सब
बात परिवार की तो छोड़ दीजिए प्रताप,
मातृभूमि हेतू प्राण दान पर लगाते सब
दिखलाना योद्धा जिसके, ना होते हों रिश्ते नाते -2
तो अकबर से समझौते की, दिल में कभी नहीं लाते
मन में है अंतर द्वंद कड़ा ...
(6) ठीक बोलते हैं आप, मन में हो साहस तो,
पथ शूरवीर का तो कड़ा तो, कोई भी नहीं
धन के निमित्त जिंदगी का खेलते हैं दाव,
किंतु यहां स्वर्ण में जड़ा तो कोई भी नहीं
चाहते हैं सब ये कि, जीत ले समूचा विश्व
लेकिन स्वयं से लड़ा तो कोई भी नहीं
सच तो यही है बंधु, सारी दुनिया में
देश और स्वाभिमान से बड़ा कोई भी नहीं -2
कवि:- श्री मनवीर मधुर(मथुरा)
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