👍कविता:- आत्मविश्वास👍
(1) अपने मन में डर का कोई, बीज ना होने देना
स्वयं संजोया सपना भी, हरगिज मत खोने देना
लक्ष्य तुम्हारे चरण चूमने, चलकर खुद आएगा
शर्त एक है... अपनी बस, हिम्मत मत खोने देना
(2) स्वयं बुराई से अच्छाई सदा द्वन्द करती है
जिसे समर्थन मिल जाए वह सर बुलंद करती है
मुरझाया चेहरा मत रखना तुमसे लोग कटेंगे -2
खिले हुए फूलों को ही दुनिया पसंद करती है
(3) जब वह संयम को त्याग, कभी हम क्रोध किया करते हैं
तब अंतस में कितने ही, महाकाल जिया करते हैं
मुनि अगस्त की परंपरा के, हम हैं जीने वाले -2
एक चुल्लू में सारा सागर, सोख लिया करते हैं
(4) किसी अंधे को जो यदि रेवड़ियाँ सौप दोगे
अपनों में बांटने की आदत ना जाएगी
जिसने कभी भी शास्त्र ज्ञान प्राप्त ना किया हो
बकवास छाटने की आदत ना जाएगी
बचपन से ही झूठ बोलना सीखा,
हर बात से ही नाटने की आदत ना जाएगी
कितने ही भोग आप कुत्तों को लगाएं किंतु,
झुटन को चाटने की आदत न जाएगी
(5) अंहकार जब सर चढ़ बोलने लगेगा
कुछ लोग हैं जो, आपको भी नहीं मानेंगे
ईश्वर से चाहे मिले, वरदान या कि फिर
ईश्वरीय अभिशाप को भी नहीं मानेंगे
हरदम करते रहेंगे पाप पर पाप,
पुण्य समझेंगे पाप को भी नहीं मानेंगे
आज श्री राम को, ना मानते ये लोग तो क्या -2
कल अपने भी बाप को नहीं मानेंगे।।
कवि:- श्री मनवीर मधुर(मथुरा)
(1) अपने मन में डर का कोई, बीज ना होने देना
स्वयं संजोया सपना भी, हरगिज मत खोने देना
लक्ष्य तुम्हारे चरण चूमने, चलकर खुद आएगा
शर्त एक है... अपनी बस, हिम्मत मत खोने देना
(2) स्वयं बुराई से अच्छाई सदा द्वन्द करती है
जिसे समर्थन मिल जाए वह सर बुलंद करती है
मुरझाया चेहरा मत रखना तुमसे लोग कटेंगे -2
खिले हुए फूलों को ही दुनिया पसंद करती है
(3) जब वह संयम को त्याग, कभी हम क्रोध किया करते हैं
तब अंतस में कितने ही, महाकाल जिया करते हैं
मुनि अगस्त की परंपरा के, हम हैं जीने वाले -2
एक चुल्लू में सारा सागर, सोख लिया करते हैं
(4) किसी अंधे को जो यदि रेवड़ियाँ सौप दोगे
अपनों में बांटने की आदत ना जाएगी
जिसने कभी भी शास्त्र ज्ञान प्राप्त ना किया हो
बकवास छाटने की आदत ना जाएगी
बचपन से ही झूठ बोलना सीखा,
हर बात से ही नाटने की आदत ना जाएगी
कितने ही भोग आप कुत्तों को लगाएं किंतु,
झुटन को चाटने की आदत न जाएगी
(5) अंहकार जब सर चढ़ बोलने लगेगा
कुछ लोग हैं जो, आपको भी नहीं मानेंगे
ईश्वर से चाहे मिले, वरदान या कि फिर
ईश्वरीय अभिशाप को भी नहीं मानेंगे
हरदम करते रहेंगे पाप पर पाप,
पुण्य समझेंगे पाप को भी नहीं मानेंगे
आज श्री राम को, ना मानते ये लोग तो क्या -2
कल अपने भी बाप को नहीं मानेंगे।।
कवि:- श्री मनवीर मधुर(मथुरा)
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