🙏महाभारत🙏
अपनो की चीखें कण कण से, पाना भी क्या है इस रण से
अर्जुन से श्रेष्ठ धनुर्धर को, ये मोह भला किस कारण से -2
कुरुक्षेत्र बीच कैसे रिश्ते, अंतर्मन स्वयं प्रबुद्ध करो
तुम योद्धा हो योद्धा जैसे गांडीव उठाकर युद्ध करो
सबका जीवन एक युद्ध भूमि, पग पग पर लड़ना पड़ता है -2
अवरोध मिले लाखों लेकिन, आगे तो बढ़ना पड़ता है
सब कुछ त्यागें हम शांति लिए, तब भी कैसे सो सकते हैं
है जंग सुनिश्चित सबकी ही, पर रूप अलग हो सकते हैं
लेकिन जिसने भी लक्ष्य स्वयं, प्राणों में डाला होता है -2
इतिहास वही गढता जग में, जो हिम्मतवाला होता है
ये ना समझी तो अब बहुत हुई, अब समझ जरा अबबुद्ध करो
तुम योद्धा हो योद्धा जैसे गांडीव उठाकर युद्ध करो...
यह युद्ध देने उनकी ही है, जिनको तुम अपना कहते हो
अब भी रिश्तो से मोह शेष, किस भावुकता में रहते हो
यूँ समाधान परिवारों में, हो जाते हैं हंसते गाते
वे अपना तुम्हें मानते यदि, तो लड़ने कभी नहीं आते
समझौतों के सभी द्वार बंद, अभिवादन तीरों से होगा
इस युद्ध भूमि में निर्णय तो, केवल समशीरों से होगा
ये मोह और मायूसी क्यों, अपने तेवर को क्रुद्ध करो
तुम योद्धा हो योद्धा जैसे गांडीव उठाकर युद्ध करो
हर धर्म-युद्ध में योद्धा का, होता बस रण से नाता है -2
जो शूरवीर रहता तटस्थ, वो अपराधी कहलाता है
तुम धर्मध्वजा के अनुयाई, पर उसका रखवाला मैं हूं -2
तुम केवल अपना कर्म करो, फल तो देने वाला मैं हूं
यह शौर्य भूमि है पार्थ यहां, अपना कर्तव्य निभाओगे
बलिदान हुए तो स्वर्गलोक, जीते यश-वैभव पाओगे
पाप चढ़ा आता सिर पर, रिपू-रथ का पथ अवरूद्ध करो
तुम योद्धा हो योद्धा जैसे गांडीव उठाकर युद्ध करो
अपनो की चीखें है कण-कण से, पाना भी क्या है इस रण से
अर्जुन से श्रेष्ठ धनुर्धर को, यह मोह भला किस कारण से -2
- कवि:- श्री मनवीर मधुर(मथुरा)
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