सोमवार, 25 जून 2018

      🔫 कविता:- वीर महाराणा प्रताप🔫

 "नौजवान  जुनून को ना बेड़ियों में बाँधते तो
देश का स्वाभिमान सोता ही नहीं कभी
ईंट का जवाब पत्थर से देना सीख जाते,
बगिया में कोई विष बीज बोता ही नहीं
यदि वक्ष चीर, सूर्य निकला ना होता फिर
अंधकारा अपना वजूद खोता ही नहीं
हमने बगावत के स्वर ना उठाए होते,
 देश अपना कभी स्वतंत्र होता ही नहीं"

(1) गर योद्धा हो तो याद रहे -2
दिल राष्ट्रभक्त आजाद रहे
ना भारत मां की बेटों से ,
अब कोई फरियाद रहे -2
चेहरे पर झलके स्वाभिमान ,
और मन में खुद्दारी रखना-2
यह जंग शुरू की है तुमने तो जंग सदा जारी रखना

(2) मन में है अंतर द्वंद कड़ा, सम्मुख हो पाए यह प्रश्न खड़ा
दिल शायद तय ना कर पाए, परिवार बड़ा या देश देश बड़ा-2
भावुक क्षण में भी बलिदानी, परिपाटी राणा दिखलाते
तो अकबर से समझौते की, मन में फिर कभी नहीं लाते

(3) कौन हो जो मुझको बताते मेरा धर्म आप
सोचिए कि शत्रु से लड़ूँ तो किसके लिए .?
और मुझको मिला है गढ़ने का वक्त आज
किंतु इतिहास भी गढूँ तो किसके लिए
परिवार जूझता हो भूख से तो बोलिएगा.?
आखिर मैं युद्ध भी लड़ूँ तो किसके लिए
भूखे बच्चे रोते तो, तुम कैसे धीरज रख पाते.?
तो अकबर से समझाते की, मन में फिर कभी नहीं लाते
मन में है अंतर द्वंद कड़ा...

जबाव....

(4) पूछते तो सुनो, राजवंश को बचाने हेतु
 देशभक्तों द्वारा जो चली गई वो चाल हूँ
 परिवार के निमित्त शस्त्र त्याग दें प्रताप
सामने खड़ा हुआ मैं, आपके सवाल हूं
चंदन हूं गर्व का, मेवाड़ त्याग का प्रतीक,
देशभक्तों के लिए मैं आरती का थाल हूं
लाल खुद का ही, जिसने करा दिया हलाल
उसी बलिदानी पन्ना धाय मां का लाल हूं
साहस,त्याग, पराक्रम क्या.?  यदि बच्चों को भी समझाते -2
तो अकबर से समझौते की मन में फिर कभी नहीं लाते
मन में है अंतर द्वंद कड़ा...

(5) यदि आप सुरवीर हो तो क्या नहीं है बात
 वक्त आता है तो खुद शौर्य को जगाते सब,
हृदय में जोश भरने को जय एकलिंग,
और जय भवानी नारे गाते सब
शौर्यवान है तो युद्ध कौशल दिखाते सब
बात परिवार की तो छोड़ दीजिए प्रताप,
मातृभूमि हेतू प्राण दान पर लगाते सब
दिखलाना योद्धा जिसके, ना होते हों रिश्ते नाते -2
तो अकबर से समझौते की, दिल में कभी नहीं लाते
मन में है अंतर द्वंद कड़ा ...

(6) ठीक बोलते हैं आप, मन में हो साहस तो,
पथ शूरवीर का तो कड़ा तो, कोई भी नहीं
धन के निमित्त जिंदगी का खेलते हैं दाव,
 किंतु यहां स्वर्ण में जड़ा तो कोई भी नहीं
 चाहते हैं सब ये कि, जीत ले समूचा विश्व
 लेकिन स्वयं से लड़ा तो कोई भी नहीं
सच तो यही है बंधु, सारी दुनिया में
देश और स्वाभिमान से बड़ा कोई भी नहीं -2

           कवि:- श्री मनवीर मधुर(मथुरा)

          💪कविता:- भारतीय सैनिक की विशेषता💪

शुरू से आज तक इतिहास देता यह गवाही है,
हमारी वीरता मृत्युंजयी है, शौर्य व्याही है
अलग से ना वो लोहा है, ना पत्थर है, ना शोला है
सभी का सम्मिलित प्रारूप, वो एक सिपाही है ।।

(1)  चुन-चुन के जिन्हे सहज के ना रखा जाने,
कितने अमूल्य हीरे भारती के खो गए
देकर बलिदान खुद हो गए अमर किंतु,
वे समस्त भारत को शोक में डूबो गए
सारा देश उनका ऋणी रहेगा, वीरता से
लड़ते हुए जो मां के आंचल में सो गए
शत-शत बार देश करता प्रणाम उन्हें
वो जो मातृभूमि के लिए शहीद हो गए

(2) बचपन बीता जहां खेला खाया बढ़ा हुआ
आती है क्या याद उस आंचल की छांव की
पात जो खड़क जाते, रात को मैं चौक जाती,
ऐसा लगाे, आहट हो जैसे तेरे पांव की
बात सुत आ रहा है, ये भी लगता है क्योंकि
काग भी लगा रहा है, रट कांव कांव की
लौट के तू आजा, मेरे लाल  तुझे चूम लूं मैं
तुझको पुकार दे ये माटी तेरे गांव की।।-2

           कवि:- श्री मनवीर मधुर(मथुरा)
          🔫कविता:- भारतीय सैनिक🔫

(1) भारतीय शेरो, शांति व्रत तोड़ दीजिएगा
शत्रु के लिए विनाशकारी बन जाइये
बाली दूसरों का हक, छीनने की ताक में है
आप श्रीराम से शिकारी बन जाइये
गांधी के अहिंसावादी मूल मानिएगा किन्तु,
बोस जैसे राष्ट्र के पुजारी बन जाइए
देश को है श्याम आज बांसुरी की चाह नहीं -2
वक्त चाहता है चक्रधारी बन जाइए

(2) सैनिकों के शौर्य पे ना कोई प्रश्न चिन्ह
यदि ठान शत्रु को ये जड़ से उखाड़ देते हैं
कोई दो दो हाथ करना भी यदि चाहता तो,
एक बार में ही भूमि पर पछाड़ देते हैं
कोई माया, मातृभूमि पर कुदृष्टि डालता तो
ऐसे आइनों के चेहरे बिगाड़ देते है
वंशज भरत के है, सामने हो सिंह के भी,
खेल-खेल में ही जबड़े को फाड़ देते हैं

(3) देश की जवानी को खोखला किए हुए हैं
कैसे इसके प्रति ये द्वेष मिट जाएगा
फैशन की दौड़ में जो यूँ ही दौड़ते रहे तो,
अपना ही भारतीय वेश मिट जाएगा
अंकुश लगा नहीं, विदेशी सभ्यता पर यदि,
जो भी कुछ शेष है वह भी शेष मिट जाएगा
हम ही युवा है, इस देश का भविष्य
हम ही मिटे तो सारा देश मिट जाएगा।।

       कवि:- श्री मनवीर मधुर(मथुरा)
           👍कविता:- आत्मविश्वास👍

(1) अपने मन में डर का कोई, बीज ना होने देना
स्वयं  संजोया सपना भी, हरगिज मत खोने देना
लक्ष्य तुम्हारे चरण चूमने,  चलकर खुद आएगा
शर्त एक है... अपनी बस, हिम्मत मत खोने देना

(2) स्वयं बुराई से अच्छाई सदा द्वन्द करती है
जिसे समर्थन मिल जाए वह सर बुलंद करती है
मुरझाया चेहरा मत रखना तुमसे लोग कटेंगे -2
खिले हुए फूलों को ही दुनिया पसंद करती है

(3) जब वह संयम को त्याग, कभी हम क्रोध किया करते हैं
तब अंतस में कितने ही, महाकाल जिया करते हैं
मुनि अगस्त की परंपरा के, हम हैं जीने वाले -2
एक चुल्लू में सारा सागर, सोख लिया करते हैं

(4) किसी अंधे को जो यदि रेवड़ियाँ सौप दोगे
अपनों में बांटने की आदत ना जाएगी
जिसने कभी भी शास्त्र ज्ञान प्राप्त ना किया हो
बकवास छाटने की आदत ना जाएगी
बचपन से ही झूठ बोलना सीखा,
हर बात से ही नाटने की आदत ना जाएगी
कितने ही भोग आप कुत्तों को लगाएं किंतु,
झुटन को चाटने की आदत न जाएगी

(5) अंहकार जब सर चढ़ बोलने लगेगा
कुछ लोग हैं जो, आपको भी नहीं मानेंगे
ईश्वर से चाहे मिले, वरदान या कि फिर
ईश्वरीय अभिशाप को भी नहीं मानेंगे
हरदम करते रहेंगे पाप पर पाप,
पुण्य समझेंगे पाप को भी नहीं मानेंगे
आज श्री राम को, ना मानते ये लोग तो क्या -2
कल अपने भी बाप को नहीं मानेंगे।।

               कवि:- श्री मनवीर मधुर(मथुरा)  

रविवार, 17 जून 2018

                       🙏महाभारत🙏

अपनो की चीखें कण कण से, पाना भी क्या है इस रण से
अर्जुन से श्रेष्ठ धनुर्धर को, ये मोह भला किस कारण से -2
कुरुक्षेत्र बीच कैसे रिश्ते, अंतर्मन स्वयं प्रबुद्ध करो
तुम योद्धा हो योद्धा जैसे गांडीव उठाकर युद्ध करो 

सबका जीवन एक युद्ध भूमि, पग पग पर लड़ना पड़ता है -2
अवरोध मिले लाखों लेकिन, आगे तो बढ़ना पड़ता है
सब कुछ त्यागें हम शांति लिए, तब भी कैसे सो सकते हैं
है जंग सुनिश्चित सबकी ही, पर रूप अलग हो सकते हैं
लेकिन जिसने भी लक्ष्य स्वयं, प्राणों में डाला होता है -2
इतिहास वही गढता जग में, जो हिम्मतवाला होता है
ये ना समझी तो अब बहुत हुई, अब समझ जरा अबबुद्ध करो 
तुम योद्धा हो योद्धा जैसे गांडीव उठाकर युद्ध करो...

यह युद्ध देने उनकी ही है, जिनको तुम अपना कहते हो 
अब भी रिश्तो से मोह शेष, किस भावुकता में रहते हो
यूँ समाधान परिवारों में, हो जाते हैं हंसते गाते 
वे अपना तुम्हें मानते यदि, तो लड़ने कभी नहीं आते 
समझौतों के सभी द्वार बंद, अभिवादन तीरों से होगा
इस युद्ध भूमि में निर्णय तो, केवल समशीरों से होगा 
ये मोह और मायूसी क्यों, अपने तेवर को क्रुद्ध करो
तुम योद्धा हो योद्धा जैसे गांडीव उठाकर युद्ध करो 

हर धर्म-युद्ध में योद्धा का, होता बस रण से नाता है -2
जो शूरवीर रहता तटस्थ, वो अपराधी कहलाता है
तुम धर्मध्वजा के अनुयाई, पर उसका रखवाला मैं हूं -2
तुम केवल अपना कर्म करो, फल तो देने वाला मैं हूं
यह शौर्य भूमि है पार्थ यहां, अपना कर्तव्य निभाओगे
बलिदान हुए तो स्वर्गलोक, जीते यश-वैभव पाओगे
पाप चढ़ा आता सिर पर, रिपू-रथ का पथ अवरूद्ध करो
तुम योद्धा हो योद्धा जैसे गांडीव उठाकर युद्ध करो 
अपनो की चीखें है कण-कण से, पाना भी क्या है इस रण से
अर्जुन से श्रेष्ठ धनुर्धर को, यह मोह भला किस कारण से -2


  •              कवि:- श्री मनवीर मधुर(मथुरा)

शनिवार, 16 जून 2018

              🙏वीर अभिमन्यु🙏

 ना संस्कार में क्षरण रहे, धुंधला ना कोई आचरण रहे,
कोई मां होकर भ्रूण अवस्था में सुंदरतम वातावरण रहे
चूक हुई तो जाने क्या क्या दर्द उठाना पड़ता है,
मुझसे पूछो इसका कितना मूल्य चुकाना पड़ता है
डाल दिया व्यूह तोड़ने की जो कला का बीज,
सोती हुई मुझको जवानी जगानी पड़ी
युद्ध हो रहा हो, कौन योद्धा शांत रहता है,
जोश था तो वीरता की आन निभानी पड़ी
लोहा मान गया, मेरे युद्ध कौशल का विश्व, -2
उंगली सभी को दांतो तले दबानी पड़ी
अंजानी गलती हुई थी आपसे, परंतु
कीमत तो मुझे जान देकर चुकानी पड़ी
जुड़े रहें कमजोर तो पौधे को मुरझाना पड़ता है,
मुझसे पूछो इसका कितना मूल्य चुकाना पड़ता है
ना संस्कार में क्षरण रहे....2

जो भी वक्त ने लिखा था,घटा वही है जिंदगी में,
कहता नहीं कि आप का दुलारा नहीं था
शौर्यपुत्र व्यूह नीति जानते नहीं थे,और
मुझको भी शीश झुकना गवारा नहीं था
युद्ध लड़ने गया वो तेरे गर्भ की ही सीख, -2
कौन कहेगा जवाब में करारा नहीं था
सारे महारथी और तेरा यह अकेला शेर,
मारा तो भले गया, परंतु हारा नहीं था
देख पराक्रम दुश्मन को भी शीश झुकाना पड़ता है
मुझसे पूछो इसका कितना मूल्य चुकाना पड़ता है
ना संस्कार में क्षरण रहे....2

कि व्यूह देखकर मजबूर हो गए थे सब,
मैंने यौवन का जोश झुकने नहीं दिया
भले लावा खोलता रहा हो सबके दिलों में,
हौसले को यूंही झुकने नहीं दिया
नहीं पिता को पत्र ने संभाली कमान -2
बढ़ता विजय रथ रूकने नहीं दिया
मार ही दिया अधर्म के धुरंधरों ने किंतु,
शीश धर्मराज का झूकने नहीं दिया
उम्र नहीं वीरों को अपना शौर्य दिखाना पड़ता है,
मुझसे पूछो इसका कितना मूल्य चुकाना पड़ता है
ना संस्कार में क्षरण रहे....2

पक्षधर हो चुके अधर्मना और अनीति के जो,
पैरों तले उनके जमीन हिला देता मैं
चाहे तेरे गर्भ में मिला अधूरा ज्ञान किन्तु,
ध्वस्त कर विरोधियों का किला देता मैं
कितने ही बलशाली अनुभवों की फौज,
खाक में सभी का अहंकार मिला देता मैं
एक-एक कर यदि लड़ते महारथी तो,
सभी को छटी का दूध याद दिला देता मैं
यौद्धा यदि सड़यंन्त्र करे, अन्ततः दहल जाना पड़ता है,
मुझसे पूछो इसका कितना मुल्य चुकाना पड़ता है
ना संस्कार में क्षरण रहे....2

शौर्य ग्रन्थ रचते पिता जो स्वर्ण अक्षरों में,
उसमें नवीन एक प्रष्ठ जोड़ देता मैं
यानी हम से जो दुश्मनी किए हुए हैं भला,
आप ही बताएं उन्हें कैसे छोड़ देता मैं
साहसी, पराक्रमी परंपरा निभाते हुए,
नींबूओं सा शत्रुदल को निचोड़ देता मैं
सुनते हुए कहानी आप यदि सोती नहीं,
आप की कसम चक्रव्युह तोड़ देता मैं
अनजाने गलती पर, सदियों तक पछताना पड़ता है
मुझसे पूछो इसका कितना मूल्य चुकाना पड़ता है
ना संस्कार में क्षरण रहे....2

           कवि:- श्री मनवीर मधुर(मथुरा)
                  ⛳ भारत⛳

यहां पर किसान मोती बोता, यहां शिशु बन कर इश्वर रोता
हिमराज हिमालय मुकुट स्वयं, सागर सम्राट चरण धोता।
भारत-भू यहां पर निकली गीता ईश्वर की वाणी से
यहां पापी पावन होता है, गंगा के निर्मल पानी से
यहां पर किसान मोती बोता......2

अद्भुत देश, अद्भुत त्याग की मिसाल
कब,कौन, क्या व किसका काज त्याग देता है
त्याग के समाज को फकीर बन जाता कोई,
और किसी को यहां समाज त्याग देता है
वामन जो भगवान होकर भूमि मांगते हैं,
ध्रुव राजपुत्र होकर राज त्याग देता है
एक महाभारत है, भाइयों में ताज हेतु,
एक भाई राम हेतु ताज त्याग देता है
जन्मे इस धरती ने कितने, लाल भरत बलिदानी से,
यहां पापी पावन होता है गंगा के निर्मल पानी से
यहां पर किसान मोती बोता......2

शक्ति का प्रमाण रानी दुर्गावती रही तो,
अक्खड़ कबीर अभिव्यक्ति का प्रमाण है
अभिव्यक्ति ऐसी जो प्रमाण निर्भीकता का,
ध्रुव-सा चरित्र जो विरक्ति का प्रमाण है
थी विरक्ति महावीर जैसे यदि भारत में,
पन्नाधाय मां भी राज-भक्ति का प्रमाण है
थरथर कांप गया दुश्मन झांसी वाली मर्दानी से,
यहां पापी पावन होता है गंगा के निर्मल पानी से
यहां पर किसान मोती होता.....2

भारतीय नारी का चरित्र देखिएगा मित्र,
उन्नत जो कर देश का ललाट देती है
झांसी वाली रानी ने निज शौर्य दिखलाते हुए,
रणभूमि शत्रु के शवों से पाट देती है
जिस पत्नी के मोह में जो भटके, वो खुद
खोल पति के बुद्धि के कपाट देती है
रत्ना दिखाती राह दास तुलसी को ,
और हाणी रानी अपना ही शीश काट देती है
सारा विश्व करे तुलना बलिदानी हाणी रानी से
यहां पापी पावन होता है गंगा के निर्मल पानी से
यहां पर किसान मोती बोता.....2

जीते-जी यहां पर इतिहास गढतें हैं,
और मरकर अमर कहानी बन जाते हैं
इस भूमि पर दधिचि देवों की सुरक्षा हेत,
हड्डियों को देके महादानी बन जाते हैं
भारत की माटी ही विलक्षण है जिसे चाट,
कान्हा खुद ईश्वर के मांनी बन जाते हैं
उद्धव से ज्ञानी यहां मूर्ख बन जाते,
और कालिदास जैसे मूर्ख ज्ञानी बन जाते हैं
पानी-पानी ज्ञान हुआ यहां उलझ प्रेम पटरानी से,
यहां पापी पावन होता है गंगा के निर्मल पानी से
यहां पर किसान मोती बोता....2


🙏अमीरी की तो ऐसी की ...ऐसी की
अपना घर लुटा बैठे😌
और फकीरी की तो ऐसी की😍
कि उसके घर मेंकि उसके घर मेंउसके घर में जा बैठे🙏

                    कवि :- श्री मनवीर मधुर जी (मथुरा)
    😌फिर मेरी याद😍

फिर मेरी याद आ रही होगी
फिर वो दीपक बुझा रही होगी
फिर मेरे Facebook पर आकर वो
खुद को बैनर बना रही होगी
फिर मेरी याद आ रही होगी....2

अपने बेटे का चूम कर माथा
मुझको टीका लगा रही होगी
फिर मेरी याद आ रही होगी....2

फिर उसी ने उसे छुआ होगा
फिर उसी से निभा रही होगी
फिर मेरी याद आ रही होगी....2

जिस्म चादर सा बिछ गया होगा
रूह सलवट हटा रही होगी
फिर मेरी याद आ रही होगी....2

फिर से एक रात कट गई होगी
फिर से एक रात आ रही होगी
फिर मेरी याद आ रही होगी
फिर वो दीपक बुझा रही होगी....2

       कवि :- कुमार विश्वास
हार गया तन-मन पुकार कर तुम्हें
कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें

जिस पल हल्दी लेपी होगी तन पर माँ ने
जिस पल सखियों ने सौंपी होंगीं सौगातें
ढोलक की थापों में, घुँघरू की रुनझुन में
घुल कर फैली होंगीं घर में प्यारी बातें

उस पल मीठी-सी धुन
घर के आँगन में सुन
रोये मन-चैसर पर हार कर तुम्हें
कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें

कल तक जो हमको-तुमको मिलवा देती थीं
उन सखियों के प्रश्नों ने टोका तो होगा
साजन की अंजुरि पर, अंजुरि काँपी होगी
मेरी सुधियों ने रस्ता रोका तो होगा

उस पल सोचा मन में
आगे अब जीवन में
जी लेंगे हँसकर, बिसार कर तुम्हें
कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें

कल तक मेरे जिन गीतों को तुम अपना कहती थीं
अख़बारों मेें पढ़कर कैसा लगता होगा
सावन को रातों में, साजन की बाँहों में
तन तो सोता होगा पर मन जगता होगा

उस पल के जीने में
आँसू पी लेने में
मरते हैं, मन ही मन, मार कर तुम्हें
कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें

हार गया तन-मन पुकार कर तुम्हें
कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें