गुरुवार, 25 जून 2015



ये बयान-ऐ-इश्क़ है,एक गुज़ारिश सबसे :-
"ग़ज़ल'
टूट कर ख्वाब जो हैं, आँख में चुभने लगते |
दास्ताँ उनकी बयाँ,ये अश्क़ है करने लगते ||
पलकें भारी है शिकायत ये नहीं कर सकती,
मेले अश्क़ों के किनारो पर भी लगने लगते ||
आइना टूट गया..फिर से नहीं..जोड़ा जाता,
जब भी जोड़ा उसे, हम गैर हैं दिखने लगते ||
ख्वाब-औ-दिल का,सबब यार है शीशे जैसी,
चोट लगती इन्हें, जब भी ये बिखरने लगते ||
टूट कर काँच है चुभता, तो कसकने लगता,
दुखते जब भी हैं तो, जख्म ये रिसने लगते ||
जब भी हमदर्द कोई,.अपना दगा.. दे जाता,
लगते"वीरान" पर,हम भी तो तड़पने लगते || p

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