शनिवार, 17 मई 2025

मुझे कौन पूछता था, तेरी वंदगी से पहले



मुझे कौन पूछता था, तेरी वंदगी से पहले।

मैं बुझा हुआ दिया था, तेरी वंदगी से पहले।।


तुमने जो ज्योति दी है, जीवन बदल गया है।

मेरा मन तुम्हारे ढंग में, अनयास ढल गया है।।

तुमने तराशा जीवन, प्रतिमा बना दिया।

पाषाण सा पडा था, तेरी वंदगी से पहले।।

मुझे कौन पूछता था, तेरी वंदगी से पहले।।


सांसें जो दी हैं तुमने, जीता हूं उनको लेकर।

अनमोल भाव जल से सींचा प्रभाव देकर ।।

सूखा पडा था पौधा, तेरी वंदगी से पहले ।।

मुझे कौन पूछता था, तेरी वंदगी से पहले।।


सागर के खारी जल में, सीपी में बंद था मैं।

लाये निकाल गुरुवर, नादान मंद था मै।।

कीचड में मैं पडा था, तेरी वंदगी से पहले।।

मुझे कौन पूछता था, तेरी वंदगी से पहले।।

मैं बुझा हुआ दिया था, तेरी वंदगी से पहले।।

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