शनिवार, 17 मई 2025

मुझे कौन पूछता था, तेरी वंदगी से पहले



मुझे कौन पूछता था, तेरी वंदगी से पहले।

मैं बुझा हुआ दिया था, तेरी वंदगी से पहले।।


तुमने जो ज्योति दी है, जीवन बदल गया है।

मेरा मन तुम्हारे ढंग में, अनयास ढल गया है।।

तुमने तराशा जीवन, प्रतिमा बना दिया।

पाषाण सा पडा था, तेरी वंदगी से पहले।।

मुझे कौन पूछता था, तेरी वंदगी से पहले।।


सांसें जो दी हैं तुमने, जीता हूं उनको लेकर।

अनमोल भाव जल से सींचा प्रभाव देकर ।।

सूखा पडा था पौधा, तेरी वंदगी से पहले ।।

मुझे कौन पूछता था, तेरी वंदगी से पहले।।


सागर के खारी जल में, सीपी में बंद था मैं।

लाये निकाल गुरुवर, नादान मंद था मै।।

कीचड में मैं पडा था, तेरी वंदगी से पहले।।

मुझे कौन पूछता था, तेरी वंदगी से पहले।।

मैं बुझा हुआ दिया था, तेरी वंदगी से पहले।।

राधारमण, बाधा हरण !



राधारमण, बाधा हरण। मंगल करण, शरण तेरी।।

हौं अनाथ तो नाथ तू। दीनानाथ, शरण तेरी।।

राधारमण....

पापी हौं, हूं नीच अधर्मी। 

पापहर्ता, शरण तेरी।।

राधारमण....

दीन हौं मलीन हौं। कामी ओ क्रोधी हौं,

लोभी अति भारी, कृपासिन्धु शरण तेरी।।

राधारमण, बाधा हरण। मंगल करण, शरण तेरी।।

महाराज श्री की कृपा 🙏🏻देव🖋️