सोमवार, 10 जून 2019

!!भजन!! 
मुझसे अधम अधीन उबरे न जाएँगे,
तो आप दीनबंधु पुकारे न जाएँगे।
जो बिक चुके हैं और ख़रीदा है आपने
अब वह गुलाम ग़ैर के द्वारे न जाएँगे।
पृथ्वी के भार आपने सौ बार उतारे,
क्या मेरे पाप भार उतारे न जाएँगे।
खामोश हूँगा मैं भी गर आप ये कह दो,
अब मुझसे पातकी कभी तारे न जाएँगे।
तब तक न चरण आपके संतोष पाएँगे,
दृग ‘बिन्दु’ में जब तक ये पखारे न जाएँगे।
!!भजन!! 
भक्त बनता हूँ मगर अधमों का सिरताज भी।
देखकर पाखंड मेरा हंस पड़े ब्रजराज भी।
कौन मुझसे बढकर पापी होगा इस संसार में।
सुन के पापों कि कहानी डर गये यमराज भी।
क्यूं पतित उनसे कहे सरकार तुम तारो हमें।
हैं पतितपावन तो रक्खेंगे अपनी लाज भी।
‘बिन्दु” दृग के दिल हिलादें क्यों न दीनानाथ का।
दर्द दिल भी साथ है औ’ दुखभरी आवाज भी।
!!भजन!!
है प्रेम जगत में सार और सार कुछ नहीं।
कहा घनश्याम में उधौ कि वृन्दावन जरा जाना,
वहाँ की गोपियों को ज्ञान का तत्व समझाना।
विरह की वेदना में वे सदा बेचैन रहती हैं,
तड़पकर आह भर कर और रो-रोकर ये कहती है।
है प्रेम जगत में सार और सार कुछ नहीं॥1॥

कहा हँसकर उधौ ने, अभी जाता हूँ वृन्दावन।
जरा देखूँ कि कैसा है कठिन अनुराग का बंधन,
हैं कैसी गोपियाँ जो ज्ञान बल को कम बताती हैं।
निरर्थक लोकलीला का यही गुणगान गातीं हैं,
है प्रेम जगत में सार और सार कुछ नहीं॥2॥

चले मथुरा से दूर कुछ जब दूर वृन्दावन नज़र आया,
वहीं से प्रेम ने अपना अनोखा रंग दिखलाया,
उलझकर वस्त्र में काँटें लगे उधौ को समझाने,
तुम्हारे ज्ञान का पर्दा फाड़ देंगे यहाँ दीवाने।
है प्रेम जगत में सार और सार कुछ नहीं॥3॥

विटप झुककर ये कहते थे इधर आओ इधर आओ,
पपीहा कह रहा था पी कहाँ यह भी तो बतलाओ,
नदी यमुना की धारा शब्द हरि-हरि का सुनाती थी,
भ्रमर गुंजार से भी यही मधुर आवाज़ आती थी,
है प्रेम जगत में सार और सार कुछ नहीं॥4॥

गरज पहुँचे वहाँ था गोपियों का जिस जगह मण्डल,
वहाँ थी शांत पृथ्वी, वायु धीमी, व्योम था निर्मल,
सहस्रों गोपियों के बीच बैठीं थी श्री राधा रानी,
सभी के मुख से रह रह कर निकलती थी यही वाणी,
है प्रेम जगत में सार और सार कुछ नहीं॥5||

मंगलवार, 4 जून 2019

राम कहने से तर जाएगा,
पार भव से उत्तर जायेगा ।

उस गली होगी चर्चा तेरी,
जिस गली से गुजर जायेगा ।
राम कहने से तर जाएगा...

बड़ी मुश्किल से नर तन मिला,
कल ना जाने किधर जाएगा ।
राम कहने से तर जाएगा...

अपना दामन तो फैला ज़रा,
कोई दातार भर जाएगा ।
राम कहने से तर जाएगा...

सब कहेंगे कहानी तेरी,
जब इधर से उधर जाएगा ।
राम कहने से तर जाएगा...

याद आएगी हर पल तेरी,
काम ऐसा जो कर जाएगा ।
राम कहने से तर जाएगा...
!!भजन!! 
हम सोचते काम दुनिया के करले।
धन धाम अर्जित कर, नाम करले।
फिर एक दिन बनके साधु रहेंगे।
कभी उस दिन के भरोसे न रहना।
बदलता जो क्षण क्षण मन वृत्ति अपनी।
कभी अपने मन के भरोसे न रहना।
ये तन किमती है, मगर है विनाशी।
कभी अगले क्षण के भरोसे न रहना।

🙏श्री स्वामी राजेश्वरानंद जी महाराज🙏

सोमवार, 3 जून 2019

*प्रेस और इंप्रेस*
दो शब्द हैं प्रेस और इंप्रेस।
प्रेस मतलब किसी पर दबाव बनाना, इंप्रेस मतलब किसी को खुश करना। दोनों ही परिस्थिति में हम खुद को ही बदलते हैं।
प्रेस करने के लिए हम अपने आप को ऐसा बनाते हैं कि दूसरा व्यक्ति डर सके अथवा दबाव में आ जाए और इंप्रेस करने के लिए भी हम खुद को ही बदलते हैं और ऐसा बनाते हैं कि जिससे दूसरे व्यक्ति को अच्छा लग सके।
अतः दोनों ही परिस्थितियों में हमें खुद को ही बदलना पड़ता है वह भी दूसरों के लिए और कुछ समय के लिए उसके बाद व्यवहार पुनः स्थिति में आ जाता है। हां कुछ असर जरूर रहता है लेकिन वह ऐसे जैसे किसी घर पर हम नया रंग कर दें और कुछ बारिशों के बाद में वह धुल जाता है।
इसका तात्पर्य यह समझा जा सकता है कि हम खुद को दूसरों के लिए बदलने में पूरी *जिंदगी* निकाल देते हैं *कभी प्रेस करने में कभी इंप्रेस करने में यदि हम जैसे हैं वैसे ही रहें या खुद को खुद ही के लिए बदले तब कुछ बात बन सके क्योंकि *खुद को खुद ही ढूंढना खुदा से मुलाकात एक बहाना हो सकता है*
🙏🏻ये बात किसी व्यक्ति विशेष के लिए नहीं है वरन यह स्वयं किए हुए विचार हैं स्वयं के लिए🙏🏻

*हम ही से भूले, हम ही में भूले
हमें ढूंढने, हम ही चले
हम ही ने खोजा, हम ही न पाया
हमें मिले तो, हम ही मिले
🙏🏻आपका देव🙏🏻