मंगलवार, 20 नवंबर 2018

कविता:- बलिदान रहेगा सदा अमर, मरदानी लक्ष्मीबाई का
(1) निर्जला शुष्क सी धरती पर, मानवता जब कुम्भलाती है
जब घटा टोप अंधीयारों में स्वतंत्र घड़ी अकुलाती है
जब नागफनी को पारिजात के, सदृश्य बताया जाता है
जब मानव को दानव होने का बोध कराया जाता है
जब सिंहनाद की जगह, सिंघालों की आवाजें आती हैं -2
जब कोओं के आदेशों पर कोयलें बाध्य हो गाती हैं
जब अनाचार की परछाई सुविचार घटाने लगती है,
जब कायरता बनकर मिसाल मन को तड़पा ने लगती है
तब धर्म युद्ध के लिए हमेशा, शस्त्र उठाना पड़ता है -2
देवी हो अथवा देव रूप धरती पर आना पड़ता है
हर कोना भरा वीरता से, इस भारत की अंगनाई का -2
बलिदान रहेगा सदा अमर मरदानी लक्ष्मीबाई का

(2) गोरों की सत्ता के आगे, थे जब वीरों के झुके भाल
झांसी पर संकट छाया तो जल उठी सूर्य की महाज्वाल
अबला कहते थे लोग जिसे, जब पहली बार सबल देखी
भारत क्या पूरी दुनिया ने नारी की शक्ति प्रबल देखी
लेकर कृपाण संकल्प किया-2, निज धरा नहीं बटने दूंगी
मेरा सिर चाहे कट जाए अस्तित्व नहीं घटने दूंगी
पति परम धाम को चले गए, मैं हिम्मत कैसे हारूंगी
मर जाऊंगी समरांगण में या तो गैरों को मारूंगी
त्यागे श्रंगार अवस्था के(22), रण के आभूषण धार लिए
जिन हाथों में कंगन खनके उन हाथों में हथियार लिए
शिशु पृष्ठ भाग पर बांध लिया2-3, बलिगायें सादी दातों में
फिर घोटक पर होकर सवार, गहलिए खड़ग निज हाथों में
जब तक मही🌍  शेष 🐍 सीस पर है, है उदाहरण तरुणाई का
बलिदान रहेगा सदा अमर, मरदानी लक्ष्मीबाई का

(3) गौरों की सेना पर रानी, दावानल बनकर छाई थी-2
रणचंडी ने खप्पर भरकर तब अपनी प्यास बुझाई थी
उड़ चला पवन के वेग पवन, बादल बादल बन बरस गया
चपलासम तलवारे चमक उठी दुश्मन पानी को तरस गया
रण बीच अकेली डटी रही-2, साहस के तब पौबारे थे
दुश्मन से बाजी जीत गए पर हम अपनों से हारे थे-2
त्रेता में पद-लोलूप होकर, भाई को जब मरवाता है
द्वापर में राज्य हड़पने को जब महायुद्ध हो जाता है
सत्ता को अक्षुण्ण रखने का-2, जब लोभ-मोह जग जाता है
तब गद्दारी का कुटिल दाग उसके माथे लग जाता है
इतिहास साक्षी बन जाता है-2, हर अकथनीय सच्चाई का
बलिदान रहेगा सदा अमर, मरदानी लक्ष्मीबाई का ||

       कवियत्री:- कविता तिवारी

रविवार, 18 नवंबर 2018

श्री राधा हमारी गोरी गोरी नवल किशोरी कन्हैया तेरो तारे है
श्री राधा हमारी गोरी गोरी, के नवल किशोरी, कन्हैया तेरो कारो है।
यो तो कालो नहीं है मतवारो, जगत उज्यारो, श्री राधा जी को प्यारो है॥

श्री श्यामा किशोरी,
गोरे मुख पे तिल बनेओ, ताहि करूँ मैं प्रणाम।
मानो चन्द्र बिछाई के पौढ़े सालगराम॥

राधे तू बडभागिनी, कौन तपस्या कीन,
तीन लोक का रणतरण वो तेरे आधीन॥

कीर्ति सुता के पग पग में प्रयागराज,
केशव की केलकुंज कोटि कोटि काशी है।
यमुना में जगनाथ रेणुका में रामेश्वर,
थर थर पे पड़े रहें अयोध्या के वासी हैं।
गोपीन के द्वार द्वार हरिद्वार वसत यहाँ,
बद्री केदारनाथ फिरत दास दासी हैं।
सवर्ग अपवर्ग सुख लेकर हम करें कहाँ,
जानते नहीं हम वृन्दावन वासी हैं॥

योगी जन जान पाते है ना जिस का प्रभाव,
जिस की कला का पार शारदा न पाती है।
नारद आदि ब्रहम वादीओ ने भी न पाया तत्व,
दिव्य दिव्य शक्तियां भी नित्य गुण गातीं हैं।
शंकर समाधी में ढुंढते हैं जिसको,
श्रुतियां भी नेति नेति कह हार जातीं हैं।
वो नाना रूप धारी विष्णु मोहन मुरारी,
उस विष्व के मदारी को गोपियाँ नाचतीं हैं॥

श्याम तन श्याम मन श्याम ही हमारो धन,
आठों याम उधो हमें श्याम ही सो काम है।
श्याम हिये श्याम जीय श्याम बिनु नहीं पिय,
अंधे की सी लाकडी आधार श्याम नाम है।
श्याम गति श्याम मति श्याम ही है प्रानपति,
श्याम सुखधाम सो भलाई आठो याम है।
उधो तुम भये भोरे पाती ले के आये दोड़े,
योग कहाँ राखें यहाँ रोम रोम श्याम है॥

गवार से राजकुमार भये, जब भानु के द्वार लो आन लगें हैं।
बंसरी की उभरी है कला, जब किरिती किशोरी के गाने लगें हैं।
राधिका के संग फेरे पड़े, तब से कहना इतराने लगें हैं॥

हमरी राधा की कौन करे होड़,
सुनो रे प्यारे नन्द गईया।

राधा हमारी भोरी भारी,
यो तो छलिया माखन चोर।

देखो तेरे कनुआ की छतरी पुराणी,
वा की छतरी की कीमत करोड़।

चार टके की तेरी कारी कमरिया,
या की चुनरी की कीमत करोड़।

देखो तेरे कनुआ को मुकुट झुको है,
हमरी राधा के चरनन की और।

ब्रजमंडल के कण कण में बसी तेरी ठकुराई।
कालिंदी की लहर लहर ने, तेरी महिमा गाई॥
पुलकत हो तेरा यश गावे, श्री गोवर्धन गिरिराई।
ले ले नाम तेरो मुरली में नाचे कुवर कहनाई॥

शनिवार, 17 नवंबर 2018

कविता:- आँख चल गई
वैसे तो एक शरीफ इंसान हूँ,
आप ही की तरह श्रीमान हूँ,
मगर अपनी आँख से,
बहुत परेशान हूँ।

अपने आप चलती है,
लोग समझते हैं -चलाई गई है,
जान-बूझ कर चलाई गई है,
एक बार बचपन में,
शायद सन पचपन में,
क्लास में ,
एक लड़की बैठी थी पास में,
नाम था सुरेखा,
उसने हमें देखा,
और बाईं चल गई,
लड़की हाय-हाय कहकर,
क्लास छोड़ बाहर निकल गई,
थोड़ी देर बाद
प्रिंसिपल ने बुलाया,
लम्बा-चौड़ा
लेक्चर पिलाया,
हमने कहा कि जी भूल हो गई,
वो बोले-ऐसा भी होता है,
भूल में,
शर्म नहीं आती ऐसी गन्दी हरकतें करते हो,
स्कूल में?


इससे पहले कि हकीकत बयां करते...

और इससे पहले कि,
हकीकत बयां करते,
कि फिर चल गई,
प्रिंसिपल को खल गई,
हुआ यह परिणाम,
कट गया नाम,
बमुश्किल तमाम,
मिला एक काम,
इंटरव्यू में खड़े थे क्यू में,
एक लडकी थी सामने अड़ी,
अचानक मुड़ी,
नज़र उसकी हम पर पड़ी,
और हमारी आँख चल गई,
लड़की उछल गई,
दूसरे उम्मीदवार चौंके,
फिर क्या था,
मार मार जूते-चप्पल
फोड़ दिया बक्कल,
सिर पर पाँव रखकर भागे,
लोगबाग पीछे हम आगे।

घबराहट में घुस गये एक घर में

घबराहट में,
घुस गये एक घर में,
बुरी तरह हाँफ रहे थे,
मारे डर के काँप रहे थे,
तभी पूछा उस गृहणी ने-
कौन?
हम खड़े रहे मौन
वो बोली
बताते हो या किसी को बुलाऊँ ?
और उससे पहले,
कि जबान हिलाऊँ,
आँख चल गई,
वह मारे गुस्से के,जल गई,
साक्षात् दुर्गा- सी दीखी,
बुरी तरह चीखी,
बात कि बात में जुड़ गये अड़ोसी-पडौसी,
मौसा-मौसी, भतीजे-मामा
मच गया हंगामा,
चड्डी बना दिया हमारा पजामा,
बनियान बन गया कुर्ता,
मार मार बना दिया भुरता,
हम चीखते रहे,
और पीटने वाले, हमे पीटते रहे।

भगवान जाने कब तक

भगवान जाने कब तक,
निकालते रहे रोष,
और जब हमें आया होश,
तो देखा अस्पताल में पड़े थे,
डाक्टर और नर्स घेरे खड़े थे,
हमने अपनी एक आँख खोली,
तो एक नर्स बोली,
दर्द कहाँ है?
हम कहाँ कहाँ बताते,
और उससे पहले कि कुछ,कह पाते,
आँख चल गई,
नर्स कुछ न बोली,
बाई गाड ! (चल गई) ,
मगर डाक्टर को खल गई,
बोला इतने सिरियस हो,
फिर भी ऐसी हरकत कर लेते हो,
इस हाल में शर्म नहीं आती,
मोहब्बत करते हुए,
अस्पताल में,
उन सबके जाते ही आया वार्ड बॉय,
देने लगा आपनी राय,
भाग जाएँ चुपचाप नहीं जानते आप,
बढ़ गई है बात,
डाक्टर को गड़ गई है,
केस आपका बिगाड़ देगा,
न हुआ तो मरा बताकर,
जिंदा ही गड़वा देगा.
तब अँधेरे में आँखें मूंदकर,
खिड़की के कूदकर भाग आए,
जान बची तो लाखों पाए।

एक दिन सकारे बापूजी हमारे

एक दिन सकारे,
बापूजी हमारे,
बोले हमसे-
अब क्या कहें तुमसे?
कुछ नहीं कर सकते,
तो शादी कर लो ,
लडकी देख लो
मैंने देख ली है,
जरा हैल्थ की कच्ची है,
बच्ची है फिर भी अच्छी है,

जैसी भी, आखिर लड़की है
बड़े घर की है, फिर बेटा
यहाँ भी तो कड़की है
हमने कहा-
जी अभी क्या जल्दी है?
वे बोले- गधे हो
ढाई मन के हो गये
मगर बाप के सीने पर लदे हो
वह घर फँस गया तो सम्भल जाओगे।

तब एक दिन भगवान से मिलके

तब एक दिन भगवान से मिलके
धडकते दिल से
पहुँच गये रुड़की, देखने लड़की
शायद हमारी होने वाली सास
बैठी थी हमारे पास
बोली-
यात्रा में तकलीफ़ तो नहीं हुई
और आँख मुई चल गई
वे समझी कि मचल गई

बोली-
लड़की तो अंदर है,
मैं लड़की की माँ हूँ ,
लड़की को बुलाऊँ?
और इससे पहले कि मैं जुबान हिलाऊँ,
आँख चल गई दुबारा ,
उन्हों ने किसी का नाम ले पुकारा,
झटके से खड़ी हो गईं।

हम जैसे गए थे लौट आए

हम जैसे गए थे लौट आए,
घर पहुँचे मुँह लटकाए,
पिताजी बोले-
अब क्या फ़ायदा ,
मुँह लटकाने से ,
आग लगे ऐसी जवानी में,
डूब मरो चुल्लू भर पानी में
नहीं डूब सकते तो आँखें फोड़ लो,
नहीं फोड़ सकते हमसे नाता ही तोड़ लो।

जब भी कहीं आते हो,
पिटकर ही आते हो ,
भगवान जाने कैसे चलते हो?
अब आप ही बताइए,
क्या करूँ, कहाँ जाऊँ?
कहाँ तक गुण आऊँ अपनी इस आँख के,
कमबख़्त जूते खिलवाएगी,
लाख दो लाख के,
अब आप ही संभालिये,
मेरा मतलब है कि कोई रास्ता निकालिए।

जवान हो या वृद्धा, पूरी हो या अद्धा
केवल एक लड़की जिसकी आँख चलती हो,
पता लगाइए और मिल जाये तो,
हमारे आदरणीय काका जी को बताइए।
कविता:- कहाँ पर बोलना है
कहाँ पर बोलना है
और कहाँ पर बोल जाते हैं।
जहाँ खामोश रहना है
वहाँ मुँह खोल जाते हैं।

कटा जब शीश सैनिक का
तो हम खामोश रहते हैं।
कटा एक सीन पिक्चर का
तो सारे बोल जाते हैं।

नयी नस्लों के ये बच्चे...

नयी नस्लों के ये बच्चे
जमाने भर की सुनते हैं।
मगर माँ बाप कुछ बोले
तो बच्चे बोल जाते हैं।

बहुत ऊँची दुकानों में
कटाते जेब सब अपनी।
मगर मज़दूर माँगेगा
तो सिक्के बोल जाते हैं।

अगर मखमल करे गलती...

अगर मखमल करे गलती
तो कोई कुछ नहीँ कहता।
फटी चादर की गलती हो
तो सारे बोल जाते हैं।

हवाओं की तबाही को
सभी चुपचाप सहते हैं।
च़रागों से हुई गलती
तो सारे बोल जाते हैं।

बनाते फिरते हैं रिश्ते...

बनाते फिरते हैं रिश्ते
जमाने भर से अक्सर।
मगर जब घर में हो जरूरत
तो रिश्ते भूल जाते हैं।

जहाँ खामोश रहना है

कहाँ पर बोलना है
और कहाँ पर बोल जाते हैं।
जहाँ खामोश रहना है
वहाँ मुँह खोल जाते हैं।

रविवार, 4 नवंबर 2018

     कविता:- जब तक सूरज चंदा चमके तब तक ये हिंदुस्तान रहे
सुपुनीता होकर मनोवृत्ति, उत्तुंग शिखर स्पर्श करें
गुण श्रेष्ठ प्रफुल्लित हो इतने सम्यक हो क्रांति विमर्श करें
उत्फुल्ल रहे हर एक व्यक्ति, पर परम सरलता बनी रहे
शब्दों की अपनी गरिमा हो, अविराम तरलता बनी रहे
हे त्रिभुवन के पत्थूननायक, आपदा प्रबंधन के स्वामी
हम विनीत भाव कर-बद्ध खड़े, हे सर्वेश्वर अंतर्यामी
हे नाथ सनाथ करो सबको, जन-जन हो जाएं निर्विकार
विपल्लवविघोष विध्वंस मिठे, खोलो सबके हित मुख्य द्वार
नित नवकिसलय प्रसून, अति स्वर्णिम विहान रहे
भ्रमरों का जिस पर झूम-झूम, अनु गुंजित मधुरिम गान रहे
आरती भारती की उतरे, अर्पित तन मन धन प्राण रहे
जब तक सूरज चंदा चमके तब तक ये हिंदुस्तान रहे...

सारंग धनुर्धारी भगवन,श्री राम भुवन भय दूर करो
हे चक्रपाणि कर कृपा दृष्टि, छल, दंभ, द्वेष को दूर करो
हे त्रयंबकेश्वर महादेव, हे नीलकंठ अव्ढरदानी
त्रिलोक्य नाथ रोको-रोको, बढ़ रही नित्य प्रति मनमानी
सम्मोहन, मारण, वशीकरण, उच्चाटन मंत्र प्रयुक्त दिखें
जिनके कारण भय व्याप्त हुआ, भयहीन दिखे भयमुक्त दिखे
अरिहंत तुरंत करो कोतुक, रोको अनर्थ की छाया को
मन प्राण सन्न सहमे सकुचे, क्या हुआ मनुज की काया को
अनुरक्ति बढे़ सीमाओं तक, लेकिन विरक्ति का ध्यान रहे
मिट जाए तिमिर अशिक्षा का, भाषित शिक्षा का दान रहे
मानव अर्पित हो राष्ट्रहेतू, पूजित युग-युग अभिमान रहे
जब तक यह सूरज चंदा चमके, तब तक ये हिंदुस्तान रहे...

       🙏 कवियत्री:- कविता तिवारी जी 🙏
    कविता:- 🙏बोलो भारत माता की जय🙏

बिना मौसम ह्रदय कोकिल से भी गूंजा नहीं जाता,
जहां अनुराग पलता है वहां दूजा नहीं जाता
विभीषण राम जी के भक्त हैं, ये जानते सब हैं
मगर जो देशद्रोही हो उसे पूजा नहीं जाता।।

(1) मां धरती धरती है संयम, सहती है खुद पर प्रबल भार
कितने भी कोई जुल्म करे, पर कभी मानती नहीं हार
इस वसुंधरा पर अखिल विश्व, जिसकी भौगोलिक भाषा है
प्रत्येक खंड में सजे देश, उन सब की यह अभिलाषा है
हर एक देश को नाज रहा, सच्चा है अथवा झूठा है
कर्तव्य और उपायों से निर्मित सम्मान अनूठा है
निज आर्यव्रत की ओर ध्यान, आकृष्ट कराने आयी हूँ
कुछ शब्द सुमन वाली कविता स्वागत में चुनकर लाई हूं
अपने अतीत का ज्ञान तत्व हम सबको यह बतलाता है
नीतियां समर्पण वाली हो, इतिहास अमर हो जाता है
चाहे हो कलुषित भार किंतु, दिखला दो अपना सदय ह्रदय
सबसे कर-बद्ध निवेदन है, बोलो भारत माता की जय...

(2) छ: ऋतुओं वाला श्रेष्ठ देश, दुनिया का सबसे ज्येष्ठ देश
अध्ययन करने पर पाओगे, पूरी वसुंधरा पर है विशेष
सभ्यता यहां पर जिंदा है, पूजे जाते हैं संस्कार
कल-कल-कल करती है पावन नदियां ले धवलधार
हिमवान कीरिट बना जिसका, उत्तर में प्रहरी के समान
दक्षिण में सिंधु पखारे चरण, देता रहता है अभयदान
पूर्व में खाड़ी का गौरव, सीमा को रक्षित करता है
पश्चिम में अपना अरब-सिंधु, निज-गुरूता का दम भरता है
त्यौहार अनूठे लगते हैं, व्यवहार अनूठे लगते हैं
खोजो तो पाओगे जवाब, मनुहार अनूठे लगते हैं
ऐसी है भारत की धरती, रहता है जहां जीव निर्भय
सत्ता से यदि हो गई चूक, तो ईश्वर करता है निर्णय
होगा ना बाल बांका हरगिज, कर लोगे यदि मन में निश्चय
सबसे कर बंद निवेदन है बोलो भारत माता की जय...

(3) मजदूर जहां श्रम साधक हैं, उस भूमि भाग का क्या कहना
नित मेहनत का आराधक है, उस भूमि भाग का क्या कहना
बढ़ती ही रहती है प्रतिफल, भारत माता की अमिट शान
पोषित करती है जो संज्ञा, हम सब उसको कहते किसान
दर्शन दर्पण का करो चित्र और भला है चंगा है
लहराता नील गगन पथ पर, वह अपना पूज्य तिरंगा है
तैयार हमेशा रहते हैं, दुश्मन का बर्प मिटाने को
सकुचाते नहीं किशोर यहां, बलिवेदी पर चढ़ जाने को
बचना है चाहे मरना है करना है सिर्फ अखंड अजय
सैनिक सन्नद्ध समर्पित है, संकल्प लिए मन में निश्चय
हम इसे नहीं बटने देंगे, चाहे आ जाए महाप्रलय
सबसे कर बंद निवेदन है, बोलो भारत माता की जय...

             🙏कवियत्री:- कविता तिवारी जी🙏
        कविता:- बेटियाँ 👧🙏👧

नाव सद्काम की सद्वृत्ती से निष्काम खेते हैं,
सदा इतिहास के पन्ने यही पैगाम देते हैं
कभी भूले से यदि नारी सहे अपमान की पीड़ा,
तभी श्री राम के घोड़े लव-कुश थाम लेते हैं।।

(1) जिम्मेदारियों का बोझ परिवार पर पड़ा तो,
ऑटो-रिक्शा, ट्रेन को चलाने लगी बेटियां
साहस के साथ अंतरिक्ष तक भेद डाला,
सुना ! वायुयान भी उड़ाने लगी बेटियां
और कितने उदाहरण ढूंढ कर लाऊं,
हर क्षेत्र शक्ति आजमाने लगी बेटियां
वीर की शहादत पर अर्थी को कांधा देकर,
अब शमशान तक जाने लगी बेटियां-2

(2) घर में बटा हाथ, रहती हैं मां के साथ,
पिता की समस्त बाधा हरती है बेटियां
कटु वाक्य बोलने से पूर्व सोचती हैं खूब,
मन में सहमती हैं,डरती हैं बेटियां
बेटे होते उद्दंड, भले आपका दुखा दे दिल,
कष्ट सहकर भी धैर्य धरती है बेटियां
प्रश्न यह है ज्वलनशील सबके लिए है आज,
नित्य प्रति कोख में क्यों मरती है बेटियां

(3) ललिता, विशाखा, राधा रानी बेटी होती नहीं,
यशोदा दुलारे नंदनंदन नचाता कौन ?
अनुसूया जैसी बेटी तप साधिका ना होती,
पालने में ब्रह्मा,विष्णु, रूद्र को झुलाता कौन ?
जनता जनार्दन बताए एक बात आज,
सावित्री ना होती सत्यवान को बचाता कौन ?
सब कुछ होता पर एक बात सोच लेना,
कविता ना होती तो यह कविता सुनाता कौन?

      🙏कवियत्री कविता तिवारी जी🙏