शनिवार, 27 अक्टूबर 2018

मैं आंखों से आंसू गिराता नहीं हूं,
ये मोती हैं तेरे, यूं ही लुटाता नहीं हुं

हों पत्थर या हीरे या मोती, जवाहरात,
तेरे दर्द से आगे मैं जाता नहीं हूँ

खुदी को मुझे दे दिया उसने जब से,
उसे अब कभी आजमा ता नहीं हूँ

बचाता है वही बलाओं से मुझको,
मैं खुद को कभी भी बचाता नहीं हूँ

मेरा चेहरा वो जब से पढ़ने लगा है,
उसे अब कभी कुछ बताता नहीं हूँ
          🙏आपका देव🙏

मंगलवार, 23 अक्टूबर 2018

श्री सरस्वती वंदना (रवि-रुद्र-पितामह-विष्णु-नुतं )


रवि-रुद्र-पितामह-विष्णु-नुतं, हरि-चन्दन-कुंकुम-पंक-युतम् !
मुनि-वृन्द-गजेन्द्र-समान-युतं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।।

शशि-शुद्ध-सुधा-हिम-धाम-युतं, शरदम्बर-बिम्ब-समान-करम्।
बहु-रत्न-मनोहर-कान्ति-युतं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।। 

कनकाब्ज-विभूषित-भूति-पवं, भव-भाव-विभावित-भिन्न-पदम्।
प्रभु-चित्त-समाहित-साधु-पदं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।। 

भव-सागर-मज्जन-भीति-नुतं, प्रति-पादित-सन्तति-कारमिदम्।
विमलादिक-शुद्ध-विशुद्ध-पदं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।। 

मति-हीन-जनाश्रय-पारमिदं, सकलागम-भाषित-भिन्न-पदम्।
परि-पूरित-विशवमनेक-भवं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।। 

परिपूर्ण-मनोरथ-धाम-निधिं, परमार्थ-विचार-विवेक-विधिम्।
सुर-योषित-सेवित-पाद-तलं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।। 

सुर-मौलि-मणि-द्युति-शुभ्र-करं, विषयादि-महा-भय-वर्ण-हरम्।
निज-कान्ति-विलोमित-चन्द्र-शिवं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।। 

गुणनैक-कुल-स्थिति-भीति-पदं, गुण-गौरव-गर्वित-सत्य-पदम्।
कमलोदर-कोमल-पाद-तलं,तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।।
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रविवार, 21 अक्टूबर 2018

किसी ने कहा वो आते नहीं बड़े बेदर्दी हैं
यूं ही कुछ लोगों ने उसे बेवफा बना रखा है।।

उतरा सागर में जो उसको मोती मिले,
खोज की जो मेरी मुझे पा गया
नुक्ताची, संकावादी को मैं ना मिला,
भिलनी का मुझे भोलापन भा गया।।

तूने मुरत कहा मैं मुरतवान था,
तूने पत्थर कहा मैं तो पाषाण था
यह तो अपने विश्वास की बात है,
धन्ने जट्ट ने बुलाया, मैं झट आ गया।।

प्यार तो प्यार है सीधी सी बात है,
प्यार कब पूछता है कि क्या जात है
चाहे हिंदू हो,सिख हो या हो मुसलमान,
मुझको रसखान सलवार पहना गया।।

तूने हृदय से मुझको बुलाया नहीं,
बिन बुलाए कभी मैं भी आया नहीं
तूने हृदय से मुझको खिलाया नहीं,
मैं तो विदुरायिन के छिलके तक खा गया।।
               🙏राधे राधे🙏