महामंत्र
महामंत्र यह जपकर हरि ॐ तत्सत हरि ॐ तत्सत्
असुरों ने जब अग्नि का खंभा रचा था,
तो निर्दोष प्रहलाद क्यों कर बचा था
कौन सा शब्द उसकी जुबान पर,
हरि ॐ तत्सत हरि ॐ तत्सत।।
लगी पूछने जब हिमाचल कुमारी,
कि है कौन सा मंत्र कल्याणकारी
तो यूं बोले महादेव शंकर,
हरि ॐ तत्सत हरि ॐ तत्सत।।
लगी आग लंका में हलचल मचा था
क्यों कर घर विभीषण का बचा था,
लिखा था नाम कुटिया के ऊपर यही था
हरि ॐ तत्सत हरि ॐ तत्सत।।
सुना था हमने गणिका तरी थी,
कहो उसने कौनसी भक्ति करी थी
पढ़ाया नाम तोते को यही उसने,
हरि ॐ तत्सत हरि ॐ तत्सत।।
कहो नाथ शबरी के घर क्यों आए
अगर आए भी तो झूठे बेर क्यों खाए
ह्रदय में यही था दिल में यही था जब़ाँ पे यही था
हरि ॐ तत्सत हरि ॐ तत्सत।।
हलाहल का मीरा ने प्याला पिया था
कहो विश का अमृत है या क्यों कर किया था,
दीवानी थी मीरा इसी नाम की
हरि ॐ तत्सत हरि ॐ तत्सत।।
सभा में द्रोपती खड़ी रो रही थी
तो लज्जा के आंसुओं से मुंह धो रही थी
पुकारा था नाम दिल से उसने,
हरि ॐ तत्सत हरि ॐ तत्सत।।
हरिओम ने इतनी शक्ति भरी थी
गरुड़ छोड़ आए न देरी करी थी,
बढ़ा चीर उसका यही रंग रंगा था
हरि ॐ तत्सत हरि ॐ तत्सत।।
अगर घेरे चांडाल दुष्ट कोई
न हो पास तकदीर से ढाल कोई
तो भय दूर हो बोल उठे जो संभव कर
हरि ॐ तत्सत हरि ॐ तत्सत।।
हरिओम की एक माला बनाकर
जपो रात दिन अपने दिल को लगा कर
करो कीर्तन और यह नाम गाओ
हरि ॐ तत्सत हरि ॐ तत्सत।।
परम पूज्य संत श्री नित्यास्वरूपाचार्य जी महाराज के श्री मुख से