@@ वो लोग कभी किसी के नहीं होते ''' जो दोस्त और रिश्तों को "" कपड़े की तरह बदलते हैं ,,,,$$$%
🍁🌿हम तो फना हो गये आपकी आखें देख कर ,,प्यारे जैजै,,,. ना जाने आप आईना कैसे देखते होगे🌿🍁
घर की जरूरतो को पिताजी की तरह निभाने लगा हूँ........
शायद इसलिए क्योंकि मैं भी अब कमाने लगा हूँ।।।।।
वो नही हुआ पूरा इस साल
जो सोचा था
पिछले साल भी
जो अब बोल रहा हूँ
शायद मैं यही बोलूंगा
अगले साल भी
आज गुमनाम हूँ तो थोड़ा फ़ासला रख मुझसे.....
कल फिर मशहूर हो जाऊँ तो कोई रिश्ता निकल लेना...!
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकला़
हम उन्हें देखते रहे वो हमें ,
ना हम कह सके ना वो सुन सके,
अब के बार मिल के यूँ साल-ए-नौ मनाएँगे,
रंजिशें भुला कर हम नफ़रतें मिटाएँगे।
अदा हुआ न क़र्ज़ और वजूद ख़त्म हो गया
मैं ज़िंदगी का देते देते सूद ख़त्म हो गया
अपनेपन में भी परायेपन का अहसास दिलाया उन्होंने।
ऐ बिछड़ते साल! इस बार तुझे और मुझे, तज़ुर्बा खास दिलाया उन्होंने।।
एक ईट और गिर गयी दीवार-ए-जिंदगी की ,
नादान है जो कह रहा - नया साल मुबारक हो ।..
दुरिया हुई नजदिक भी हम आऐ।
हमारे हमसफ़र को हम थोड़ा और जान पाए ।
प्यार से गुज़रा प्यारा यह सफ़र।
चाहतों की चलतीं रहे हर डगर।।
आसान नहीं इस दुनिया में ख्याबों के सहारे जी लेना ।
संगीन हकीकत हैं दुनिया यह कोई सुनहरा ख्याब नहीं ।।
दुख रहे,दर्द रहे,खुशियां मिली,अफसाने भी l
कुछ पराये अपने हुए,अपने हुए अंजाने भी....
जानलेवा है उसका सांवला रंग
और मैं कड़क चाय का शौक़ीन भी हूं
इस साल भी जला दी जिंदगी जैसी जलनी थी,
अब धुंये पर बहस कैसी और राख पर हक कैसा।।
तुझे अपनाऊ तो जमाने से नाता टूट जाता है,
नया पाने की चाहत में पुराना छूट जाता है
जैसा था तुझसे पहले मैं वैसा हूँ तेरे बाद,
है ये भरम तेरा कि मैं बदला हूँ तेरे बाद।
🍁🌿हम तो फना हो गये आपकी आखें देख कर ,,प्यारे जैजै,,,. ना जाने आप आईना कैसे देखते होगे🌿🍁
घर की जरूरतो को पिताजी की तरह निभाने लगा हूँ........
शायद इसलिए क्योंकि मैं भी अब कमाने लगा हूँ।।।।।
वो नही हुआ पूरा इस साल
जो सोचा था
पिछले साल भी
जो अब बोल रहा हूँ
शायद मैं यही बोलूंगा
अगले साल भी
आज गुमनाम हूँ तो थोड़ा फ़ासला रख मुझसे.....
कल फिर मशहूर हो जाऊँ तो कोई रिश्ता निकल लेना...!
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकला़
हम उन्हें देखते रहे वो हमें ,
ना हम कह सके ना वो सुन सके,
अब के बार मिल के यूँ साल-ए-नौ मनाएँगे,
रंजिशें भुला कर हम नफ़रतें मिटाएँगे।
अदा हुआ न क़र्ज़ और वजूद ख़त्म हो गया
मैं ज़िंदगी का देते देते सूद ख़त्म हो गया
अपनेपन में भी परायेपन का अहसास दिलाया उन्होंने।
ऐ बिछड़ते साल! इस बार तुझे और मुझे, तज़ुर्बा खास दिलाया उन्होंने।।
एक ईट और गिर गयी दीवार-ए-जिंदगी की ,
नादान है जो कह रहा - नया साल मुबारक हो ।..
दुरिया हुई नजदिक भी हम आऐ।
हमारे हमसफ़र को हम थोड़ा और जान पाए ।
प्यार से गुज़रा प्यारा यह सफ़र।
चाहतों की चलतीं रहे हर डगर।।
आसान नहीं इस दुनिया में ख्याबों के सहारे जी लेना ।
संगीन हकीकत हैं दुनिया यह कोई सुनहरा ख्याब नहीं ।।
दुख रहे,दर्द रहे,खुशियां मिली,अफसाने भी l
कुछ पराये अपने हुए,अपने हुए अंजाने भी....
जानलेवा है उसका सांवला रंग
और मैं कड़क चाय का शौक़ीन भी हूं
इस साल भी जला दी जिंदगी जैसी जलनी थी,
अब धुंये पर बहस कैसी और राख पर हक कैसा।।
तुझे अपनाऊ तो जमाने से नाता टूट जाता है,
नया पाने की चाहत में पुराना छूट जाता है
जैसा था तुझसे पहले मैं वैसा हूँ तेरे बाद,
है ये भरम तेरा कि मैं बदला हूँ तेरे बाद।
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