शनिवार, 20 मई 2017

रातों को वीराना जागे,
या मुझसा दीवाना जागे.

पढ़ के नमाज़ें सो गई मस्जिद,
मस्ती मे मयखाना जागे.

घर का कमरा तो है गाफ़िल,
छिपा हुआ तहखाना जागे.

मुझमें,तुझमें,इसमें,उसमें,
सबमें आबो-दाना जागे.

किरदारों को होश नहीं है,
लेकिन हर अफ़साना जागे.

हो कबीर कोई भी उसमें,
इश्क़ का ताना-बाना जागे.

बात तो तब है जब मैं सोऊँ ,
मेरे लिए ज़माना जागे..
 
कभी हमसे दूर जाने की बात मत करना,
बिछडके तुझसे हम जी नहीं पायेगे वरना,

तुझे अपना बनाने की आरज़ू लीए बेठे हे,
नहीं तो यहाँ अकेले जीकर क्या हे करना,

हसींन लगने लगी यह जिंदगी पाकर तुझे,
जीते थे हम चहेरे पर जूठी ख़ुशी लीए वरना

इस जनम में तो मील न पाये एक दूसरे को,
अब के बाद हर जन्म में बस मेरे ही बनना,

वादा हे में आवुंगा साथ तुझे लेकर जावुंगा,
देर हो जाये तो मेरे आने का इंतज़ार करना,
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"तेरा साया. .."

*"ये कैसी आहट है कौन मेरे घर में आया होगा।*
*तेरे नाम से किसने दरवाजा खटखटाया होगा।*
*हम तो गुमनामी के अंधेरो में रहे कई वर्षों से,*
*आने वाले को किसी ने तो मेरा पता बताया होगा।*
*बैठ गया था कुछ देर के लिए मैं भी उसके पहलू में,*
*मुझको मालूम था कि वक्त दोनों ही का जाया होगा।*
*हम को कब शौक रहा गैरों से मिलने जुलने का,*
*उसने खुद को तेरे जैसा ही हूबहू सजाया होगा।*
*वही नजरें वही अदायें और खुशबू भी वही थी,*
*मुझको ये इलहाम कहां वो शख्स पराया होगा।*
*वो भी खामोश रहा नजरें अपनी झुकाए हुए,*
*मुझसे नजरें मिलाने में ज़ाहिर है  घबराया होगा।*
*मैं जिस अजनबी में तुझको ढूँढता रहा हूँ मीत,*
*वो तू तो हरगिज न था शायद तेरा साया होगा।"*