रातों को वीराना जागे,
या मुझसा दीवाना जागे.
पढ़ के नमाज़ें सो गई मस्जिद,
मस्ती मे मयखाना जागे.
घर का कमरा तो है गाफ़िल,
छिपा हुआ तहखाना जागे.
मुझमें,तुझमें,इसमें,उसमें,
सबमें आबो-दाना जागे.
किरदारों को होश नहीं है,
लेकिन हर अफ़साना जागे.
हो कबीर कोई भी उसमें,
इश्क़ का ताना-बाना जागे.
बात तो तब है जब मैं सोऊँ ,
मेरे लिए ज़माना जागे..
या मुझसा दीवाना जागे.
पढ़ के नमाज़ें सो गई मस्जिद,
मस्ती मे मयखाना जागे.
घर का कमरा तो है गाफ़िल,
छिपा हुआ तहखाना जागे.
मुझमें,तुझमें,इसमें,उसमें,
सबमें आबो-दाना जागे.
किरदारों को होश नहीं है,
लेकिन हर अफ़साना जागे.
हो कबीर कोई भी उसमें,
इश्क़ का ताना-बाना जागे.
बात तो तब है जब मैं सोऊँ ,
मेरे लिए ज़माना जागे..