सोमवार, 5 सितंबर 2016

बिटिया आज संभल कर चलना देख दरिन्दे घूम रहे
उजले कपड़े तन पर डाले मन के गन्दे घूम रहे
माँ ना जानें बहन ना जानें इनको जिस्म ही दिखता है
मासूमों की चीखों से भी इनका मन ना डिगता है
ठीक से बचपन तक ना देखा उन जिस्मों को लूट रहे
कैसे निकले घर से बेटी आज हौसले टूट रहे
जाने किसकी लाज लूट लें लेकर फंदे घूम रहे
बिटिया आज संभल कर चलना देख दरिन्दे घूम रहे
कोई कहीं अस्मत का शीशा जब वहशत से चटकता है
दर्द उठे जो दिल के अन्दर सारी उम्र टपकता है
जिस्म नौंचते भूखे भेड़िये घुटी-घुटी है सिसकारी
नारी के सीने में भी दिल है केवल जिस्म नहीं नारी
जिस्म दिखे पीड़ा ना दिखती कैसे अंधे घूम रहे
बिटिया आज संभल कर चलना देख दरिन्दे घूम रहे
कुचलो ना ऐसे बिटिया को कुदरत माफ नहीं करती
सूख ना जायें नदी सरोवर, फट ना जाये ये धरती
ढूढ़ो गर ईमान मिल जाये खुद से कहो ना पाप करे
वरना ऐसा ना हो कुदरत उठकर खुद इंसाफ करे
वरना कल धरती यूँ होगी सिर्फ परिन्दे घूम रहेr
बिटिया आज संभल कर चलना देख दरिन्दे घूम रहेr
                         आपका देव