सोमवार, 12 दिसंबर 2016

तुम्हे हम याद करते हैं कहीं से भी चले आओ,
सॉझ ढलने लगी अब तो झलक अपनी दिखा जाओ,
खुला है दर चले आना, झुका है सिर चले आना
तुम्हे हम याद करते हैं....
हाल अपना दिखाएगे, व्यथा अपनी सुनाएगे,
गले से तुम लगा लेना, कथा रो रो सुनाएगे
तुम्हे हम याद करते हैं....
भोग तुमको लगाएगे, तुम्हे अपना बनाएगे,
सफर में थक गये होगे चरण तेरे दबाएगे
तुम्हे हम याद करते हैं....
सितम का वास्ता तुमको, सितम के वास्ते आजा,
खुदा का वास्ता तुमको, खुदा के वास्ते आजा
तुम्हे हम याद करते हैं....


सोमवार, 5 सितंबर 2016

बिटिया आज संभल कर चलना देख दरिन्दे घूम रहे
उजले कपड़े तन पर डाले मन के गन्दे घूम रहे
माँ ना जानें बहन ना जानें इनको जिस्म ही दिखता है
मासूमों की चीखों से भी इनका मन ना डिगता है
ठीक से बचपन तक ना देखा उन जिस्मों को लूट रहे
कैसे निकले घर से बेटी आज हौसले टूट रहे
जाने किसकी लाज लूट लें लेकर फंदे घूम रहे
बिटिया आज संभल कर चलना देख दरिन्दे घूम रहे
कोई कहीं अस्मत का शीशा जब वहशत से चटकता है
दर्द उठे जो दिल के अन्दर सारी उम्र टपकता है
जिस्म नौंचते भूखे भेड़िये घुटी-घुटी है सिसकारी
नारी के सीने में भी दिल है केवल जिस्म नहीं नारी
जिस्म दिखे पीड़ा ना दिखती कैसे अंधे घूम रहे
बिटिया आज संभल कर चलना देख दरिन्दे घूम रहे
कुचलो ना ऐसे बिटिया को कुदरत माफ नहीं करती
सूख ना जायें नदी सरोवर, फट ना जाये ये धरती
ढूढ़ो गर ईमान मिल जाये खुद से कहो ना पाप करे
वरना ऐसा ना हो कुदरत उठकर खुद इंसाफ करे
वरना कल धरती यूँ होगी सिर्फ परिन्दे घूम रहेr
बिटिया आज संभल कर चलना देख दरिन्दे घूम रहेr
                         आपका देव


गुरुवार, 11 फ़रवरी 2016

कभी तो करके करम अपना वो बुलाऐंगे🙏🏻
उछल पड़ेंगे खुशी से दौड़े जाऐंगे....🏃🏻
कभी तो करके करम अपना....
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जाके बैठेंगे उनके सामने कुछ इस तरहा
नजर से उनकी नजर अपनी हम मिलाऐंगे
कभी तो करके करम अपना....🏃🏻
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शर्त ये रक्खेंगे, कि झपकी पलक जिसने पहले....😳
मान कर हार😌 गले उनके, वो लग जायेंगे
कभी तो करके करम अपना....🏃🏻
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ऑंख से ऑंख मिलाने की जो होगी बाजी....
खेल ही खेल मेंं, काम अपना हम कर जाऐंगे
कभी तो करके करम अपना....🏃🏻
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जीतेंगे तो भी😊, हारेंगे तो भी हम ही....
दोनो ही हाल में😌, गले उनके हम लग जाऐंगे....
कभी तो करके करम अपना वो बुलाऐंगे....
उछल पड़ेंगे खुशी से दौड़े जाऐंगे....🏃🏻
           

बुधवार, 27 जनवरी 2016

गणतन्त्र दिवस के शुभ अवसर पर मेरे मित्र कमल सिंगला जी की ये कविता देश को समर्पित
कृपा 2 मिनट का समय निकाल कर जरूर पढें
भारत मां की कहानी माँ की जुबानी...
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एक समय था जब मेरी किस्मत में चाँद सितारे थे
काश्मीर की वादी में जन्नत को हसीं नज़ारे थे
नई नवेली दुल्हन से अरमान हज़ारों मन में थे
राम कृष्ण और नानक वीर अपनी कोख से जन्में थे
फिर जाने किस मनहूस घङी में कर्मों के फल चक्खे थे
जब अंग्रेजों ने मेरी छाती पे कदम ये रक्खे थे
फिर दो सौ सालों तक इन्होनें इज्ज़त मेरी लूटी थी
खून के आँसू रोई थी और किस्मत मेरी फूटी थी
मेरे भरे खज़ाने लूटे थे इन बेशरम हैवानों ने
फिर मेरे खातिर शीश कटाए कितनी ही सन्तानों ने
मेरी आजादी के खातिर जीना मरना भूल गए
राजगुरु सुखदेव भगत फाँसी के फन्दे झूल गए
फिर पन्द्रह अगस्त उन्नी सौ सैंतालीस की शुभ घङी आई थी
जब आजादी के सूरज के संग मेरी हुई सगाई थी
फिर छब्बी जनवरी उन्नी सौ पचास का वो दिन आया
धन्य धन्य हे भारत माँ देवों ने मंगल गाया
ङाक्टर भीमराव ने फिर आजादी का संविधान लिक्खा
स्वर्ण अक्षरों में मेरे गौरव का महाविधान लिक्खा
भूल गई सारे दुख जो वर्षों तक मैंने ढोए थे
फिर से मैनें अपनी आँखों में कुछ ख्वाब संजोए थे
अब मेरे बच्चे ध्यान रखेंगे गौरव और सम्मान का
सारी दुनिया में ङंका बाजेगा हिन्दुस्तान का
हाय मेरी किस्मत मेरी सन्तानें नमकहराम हुई
मेरे बच्चों के हाथों ही इज्ज़त मेरी नीलाम हुई
साँप के जैसे फन मारकर बैठ गए हैं नोटों पे
अपनी माँ को बेच दिया खादीधारी ने कोठों पे
तुम ही कहो मैं कैसे मनाउँ जश्न अपनी आजादी का
हर रोज देखती हूँ मैं नज़ारा खुद अपनी बरबादी की
अपने लहु से रंग बसन्ती फिर से ऐसा रंग दूँगी
मेरे आँसू पोंछें अपने भगत को फिर जन्म दूँगी
वन्दे मातरम् जय हिन्द
कुछ खास लोगों के आशीर्वाद के लिए अपना इस पोस्ट में टैग किया है
मेरा मकसद सिर्फ गुणीजन लोगों तक अपनी बात रखना है
इसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूँ
               🙏देव🙏