गुरुवार, 1 अक्टूबर 2015

Betiyan


पापा के बगिया की चिङी होती हैं बेटियाँ
कभी मासूम कभी नकचङी होती हैं बेटियाँ
दुखता है कभी सिर तो सहलाती हैं प्यार से
लगाती हैं बाम मुझको इतनी बङी होती हैं बेटियाँ
आता हूँ थककर जब भी शाम को दुकान से
मेरे इंतजार में गेट पे खङी होती हैं बेटियाँ
देखके इनका चेहरा भूल जाता हूँ अपना हर गम
जादू की कोई जैसे छङी होती हैं बेटियाँ
जब बूढा बाप होस्पीटल में हो
तो शेर की बानगी महसूस कीजिए
बेटा चार किलोमीटर से पता लेने नहीं आया
और चार सौ किलोमीटर से सिराहने खङी होती हैं बेटियाँ
ये मेरी गजल बेटियाँ दुनिया की हर बेटी की नज़र 

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