रविवार, 15 दिसंबर 2024

हिन्‍दी में गोपी गीत

(छंद-हरिगीतिका छंद, तर्ज- श्रीरामचन्‍द्र कृपालु भज मन)


हे ब्रज लला ब्रज धाम को, बैकुण्ठ सम पावन किये ।

ले जन्म इस ब्रज धाम में, सुंदर चरित हैं जो किये ।।

जय देवकी वसुदेव सुत, जय नंद लाला यशुधरे ।

कर जोर कर सब गोपियां, प्रभु आपसे विनती करे ।।1।।


हे श्याम तुम जब से लिये हो जन्म इस ब्रज धाम में ।

महिमा बढ़ी इसकी तभी, बैकुण्ठ सम सब धाम में ।।

मृदुली रमा तब से यहां, करती सदा ही वास है ।

प्रभु आपके कारण बनी, ब्रज भूमि तो अब न्यास है ।।2।।


पर देखलो प्रियतम प्रिये, तुहरी सभी हम गोपियां ।

निज प्राण को तेरे चरण, अर्पित किये हैं गोपियां ।।

वन-वन फिरे भटकत गिरे, विरहन हुई हम ही जरे ।

पथ जोहती फिरती प्रिये, निज चक्षुयों में 

जल भरे ।।3।।

इस प्राण के तुम प्राण पति, हम तो चरण दासी प्रिये ।

है प्रेम घट अपना हृदय, हो नाथ तुम इनके प्रिये।।

नूतन कमल सम चक्षुवों, से क्यों हमें घायल किये ।

इन चक्षुयो से मारना, क्या वध नही होता प्रिये ।।4।।



दूषित हुई यमुना जहर से तब बचाये प्राण क्यों ।

हमको बचाने आप ने पर्वत उठाये हाथ क्यों ।।

तूफान आंधी आदि से, हमको बचाये आप क्यों ।

जितने असुर आये यहां सबने गवाये प्राण क्यों ।।5।।


हे विश्व पति केवल यशोदा लाल तुम तो हो नहीं ।

सब प्राणियों के नाथ हो, सबके हृदय में तू सहीं ।।

साक्षी सदा हर प्राणियों के, जानते हर बात को ।

तुम तो धरे हो तन यहां, प्रभु मेटने हर पाप को।।6।।


हे प्रभु मनोरथ पूर्ण कर्ता प्रेमियो के नाथ हो ।

तेरे चरण जो हैं गहे, उनके सदा तुम साथ हो ।।

संसार के हर क्लेष हर, करते अभय हर भक्त को ।

रख दो हमारे शीश पर, अपने कृपा के हस्त को ।।7।।


व्रजवासियों के पीर हरता, वीरवर तुम एक हो ।

हे मानमद के चूर करता, आप पावन नेक हो ।।

प्यारे सखा हे प्राण प्रिय, ना रूष्ठ हमसे होइये ।

मुस्कान निज मुख पर लिये, अंतस हमारे धोइये ।।8।।


लेकर शरण जिन श्री चरण, प्राणी तजे हर पाप को ।

जिन श्री चरण को चापती, लक्ष्मी रिझाती आपको ।।

जिन श्री चरण से आपने, मद हिन किये हो नाग को ।

पग धर वही प्रभु वक्ष पर, मेटें हृदय की आग को ।।9।।


वाणी मधुर इतनी मधुर, जिनके मधुर हर शब्द हैं ।

ज्ञानी परम ध्यानी परम, सुनकर जिसे मन मुग्ध हैं ।।

सुन-सुन जिसे हम गोपियां, दासी बनी बिन मोल के ।

प्रभु दीजिये जीवन हमें, वाणी मधुर फिर बोल के ।।10।।



लीला कथा प्रभु आपकी, मेटे विरह बनकर सुधा ।

तम पाप को मेटे कथा, कर शांत मन की हर क्षुधा ।।

मंगल परम लीला श्रवण, भरते खुशी हर शोक में ।

जो दान करते यह कथा, दानी वही भूलोक में ।।11।।


दिन एक था ऐसा कभी, जब मग्न रहतीं हम सभी ।

मुख पर लिये मुस्कान प्रभु, करते ठिठोली तुम जभी ।।

सानिध्य में प्रभु आपके, हम मग्न रहती थीं तभी ।

वह सुध लगा कपटी सखा, हम क्षुब्ध हो जातीं अभी ।।12।।


है नहि सुकोमल नव कमल, जैसे चरण है आपके ।

गौवें चराने जब गये, चिंता हुये कंटाप के ।

जब दिन ढले घर लौटते, गौ रज लिये निज देह पर ।

पथ जोहती हम गोपियां, आकृष्ट होती नेह पर ।।13।।


तुम ही अकेले हो जगत, हर लेत जो हर पीर को ।

प्रभु आपके ये श्री चरण, प्रतिपल हरे दुख नीर को

श्री जिस चरण को चापती, जिससे धरा रमणीय है ।

रख वह चरण हमरे हृदय, अंताकरण कमणीय है ।।14।।


अभिलाश जीवन दायनी, संताप नाशक रस अधर ।

वह वेणु तो अति धन्य है, जो चूमती रहती अधर ।।

जो पान करते यह कभी, वह रिझ सके ना अन्य पर

वह रस अधर फिर दीजिये, प्रियवर दया की दृष्टि धर ।।15।।


जाते विपिन जब तुम दिवस, पल पल घटी युग सम लगे ।

संध्या समय जब लौटते, हम देखतीं रहतीं ठगे ।।

बिखरे पड़े अलकें कली, मुख मोहनी मोहे हमें ।

पलकें हमारी बोझ है, अवरोध बनती इस समें ।।16।।


पति-पुत्र अरू परिवार को, हम छोड़ आयीं है यहां ।

हे श्याम सुंदर मोहना, छलिया छुपे हो तुम कहां ।।

सब चाल हम तो जानतीं, कपटी तुम्हारे गान में ।

मोहित हुई आयीं यहां, फँसकर तुम्हारे तान में ।।17।।


करके ठिठोली तुम कभी, अनुराग हमको थे दिये ।

तिरछे नयन से देख कर, थे़ बावरी हमको किये ।।

तब से हमारी लालसा, बढ़ती रही है नित्य ही ।

ये मन हमारे मुग्ध हो, ढ़ूंढे तुम्हे तो नित्य ही ।।18।।


ये प्रेम क्रीड़ा आपका, है दुख विनाशक ताप का ।

है विश्व मंगल दायका, जो मूल काटे पाप का ।।

प्यारे हमारा ये हृदय, अब भर रहा अनुराग से ।

कुछ दीजिये औषधि हमें, दिल जल रहा इस आग से ।।19।।


प्यारे तुम्हारे जो चरण, है अति सुकोमल पद्म से ।

उसको लिये तुम हो छुपे, घनघोर वन में छद्म से ।।

कंकड़ लगे चोटिल न हो, व्याकुल दुखी हैं सोच कर ।

हे प्राणपति अब आइये, हैं हम पराजित खोज कर ।।20।।


-रमेशकुमार सिंह चौहान