बुधवार, 4 सितंबर 2024

महाभारत:- पितामह भीष्म द्रोपदी संवाद

 महाभारत का एक प्रसंग है, एक दिन दुर्योधन ने भीष्म पितामह को बहुत बुरा-भला कहा . उन्होंने आवेश में आकर प्रतिज्ञा की कि कल पाँचो पाण्डवों को मार दूँगा. 

उसके बाद क्या होता है :


खुद तो बाहर ही खड़े रहे, भीतर भेजा पांचाली को;

यतिवर बाबा के चरणों में, जाकर अपना मस्तक रख दो ।


अर्धरात्रि की बेला में, भीषम की लगी समाधी थी;

मन प्रभु चरणों में लगा हुआ, उस जगह न कोई व्याधा थी ।


कृष्णा ने जाकर सिर रक्खा, चरणों पर भीष्म पितामह के;

चरणों पर कौन झुका, देखूँ, बाबा भीषम एकदम चौंके ।


देखा एक सधवा नारी है, चरणों पर शीश झुकाती है;

उसके तन की रंगी साड़ी, सधवापन को दर्शाती है ।


आशीर्वाद मुख से निकला, सौभाग्यवती भव हो बेटी;

तेरे हाथों की मेहंदी का न रंग कभी छूटे बेटी ।


सौभाग्य तुम्हारा अचल रहे, सिन्दूर से मांग न खाली हो;

वर देता हूँ तुझको बेटी, तू वीर कुमारों वाली हो ।


सुनकर कृष्णा ने तुरत कहा, बाबा ये क्या बतलाते हो;

कल और आज कुछ और कहा, तुम सत्यव्रती कहलाते हो ।


मेहंदी का रंग तो रहने दो, साड़ी का रंग उड़ाओ ना;

सिन्दूर जो मेरी मांग का है, बाणों से उसे छुड़ाओ ना ।


मेरे पाँचों पतियों में से, यदि एक भी मारा जायेगा;

आशीर्वाद तेरा बाबा, क्या झूठा नहीं कहायेगा ।


तब आया होश पितामह को, हाथों से माला छूट गई;

मन प्रभु चरणों में लगा हुआ, चितचोर समाधी टूट गई ।


बोले बेटी इन प्रश्नों का उत्तर पीछे दे पाउंगा;

तेरे सुहाग का निर्णय भी मैं पीछे ही कर पाउंगा ।


एक बात खटकती है मन में, हैरान है जिसने कर डाला;

बतला बेटी, वह कहाँ छिपा, इस जगह तुझे लाने वाला ।


बेटी तूने मेरे कुल को, इतना पवित्र कर डाला है;

पहरा देता होगा तेरा, जो विश्व रचाने वाला है ।


बूढ़ा होने को आया है, पर अब भी गई नहीं चोरी;

नित नई नीतियाँ चलता है, तुमसे चोरी, मुझसे चोरी ।


बाहर आकर के जो देखा, ड्योढ़ी का दृश्य निराला था;

पीताम्बर का घूंघट डाले, वो खड़ा बांसुरी वाला था ।


चरणों से जाकर लिपट गये, छलिया छलने को आया है;

भक्तों की रक्षा करने को, दासी का वेष बनाया है ।


*


कहते हैं द्रौपदी का जूता था, पीताम्बर के कोने में;

उर में करुणा का भार लिये थे लगे पितामह रोने में ।   


हे द्रुपद सुता, मेरी बेटी, अब जाओ विजय तुम्हारी है;

पतियों का बाल न बाँका हो, जब रक्षक कृष्ण मुरारी हैं ।


जब रक्षक कृष्ण मुरारी हैं, भव भय भंजन भय हारी हैं;

जब रक्षक कृष्ण मुरारी हैं, भव भय भंजन भय हारी हैं । 

🙏🏻Dev