शुक्रवार, 7 मई 2021

रे मन! दो दिन का मेला रहेगा

 रे मन! ये दो दिन का मेला रहेगा।

कायम न जग का झमेला रहेगा॥
किस काम ऊँचा जो महल तू बनाएगा।
किस काम का लाखों जो तोड़ा कमाएगा॥
रथ-हाथियों का झुण्ड भी किस काम आएगा।
तू जैसा यहाँ आया था वैसा हीं जाएगा॥
तेरे हीं सफ़र में सवारी की खातिर।
कन्धों पै गठरी का मैला रहेगा॥

बुधवार, 5 मई 2021

बिन्दु जी

 छोड़ बैठा है सारा जमाना मुझे,

नाथ अब आप हीं दो ठिकाना मुझे।

पातकों की घटा घोर घमसान है,
और खल सिन्धु का बेग बलवान है।
काम मद क्रोध माया का तूफ़ान है,
देह जलयान का जीर्ण सामान है।
छाहते हैं मिलकर डूबना मुझे॥
नाथ अब आप हीं दो ठिकाना मुझे।
क्या तुम्हें दीन गज ने पुकारा नहीं,
क्या दुखी था गीध तुमको प्यारा नहीं।
क्या यवन पिंगला को उबारा नहीं,
क्या अजामिल अधम तुमने तारा नहीं।
फिर बताते हो क्यों कर बहाना मुझे॥
नाथ अब आप हीं दो ठिकाना मुझे।
किस के कदमों पर नीचा सिर मैं करूँ।
आह का किस के दिल पर असर मैं करूँ,
किसका घर है जिस पर मैं घर करूँ।
अश्रु के ‘बिदु’ किसकी नज़र मैं करूँ,
आख़िरी ये है विनती सुनना मुझे॥
नाथ अब आप हीं दो ठिकाना मुझे।

सोमवार, 3 मई 2021

बिन्दू जी

उम्मीद है कि उनके हम खाकसार होंगे,

जो प्रेमियों के प्यारे जीवन अधार होंगे।

बसे तो उनके प्रेमी लाखों में हजार होंगे,

पर हमसे दीन दुर्बल बस दो ही चार होंगे।

गर बार-बार उनकी नजरों में खवर होंगे,

फिर भी गुलाम उनके हम निसार होंगे॥


जीतेंगे हम जो उनसे जीवन निसार होंगे,

हारेंगे हम जो उनसे तो गले का हार होंगे।

उनके चरण कि नौका पाकर सवार होंगे,

तो ‘बिन्दु’ भी किसी दिन भवसिंधु पार होंगे॥

राधा और रुक्मिणी

 रुक्मिणी और राधिका दोनों ने प्रेम किया था। 


एक ने बालक कन्हैया से, दूसरे ने राजनीतिज्ञ कृष्ण से। 


एक को अपनी मनमोहक बातों के जाल में फँसा लेने वाला कन्हैया मिला था, और दूसरे को मिले थे सुदर्शन चक्र धारी, महायोद्धा कृष्ण।


कृष्ण राधिका के बाल सखा थे, पर राधिका का दुर्भाग्य था कि उन्होंने कृष्ण को तात्कालिक विश्व की महाशक्ति बनते नहीं देखा। राधिका को न महाभारत के कुचक्र जाल को सुलझाते चतुर कृष्ण मिले, न पौंड्रक-शिशुपाल का वध करते बाहुबली कृष्ण मिले।

रुक्मिणी कृष्ण की पत्नी थीं, महारानी थीं, पर उन्होंने कृष्ण की वह लीला नहीं देखी जिसके लिए विश्व कृष्ण को स्मरण रखता है। उन्होंने न माखन चोर को देखा, न गौ-चरवाहे को। उनके हिस्से में न बाँसुरी आयी, न माखन।

राधिका के लिए कृष्ण कन्हैया था, रुक्मिणी के लिए कन्हैया कृष्ण थे। 


पत्नी होने के बाद भी रुक्मिणी को कृष्ण उतने नहीं मिले कि वे उन्हें "तुम" कह पातीं। आप से तुम तक की इस यात्रा को पूरा कर लेना ही प्रेम का चरम पा लेना है। रुक्मिणी कभी यह यात्रा पूरी नहीं कर सकीं।

    

राधिका की यात्रा प्रारम्भ ही 'तुम' से हुई थीं। उन्होंने प्रारम्भ ही "चरम" से किया था। शायद तभी उन्हें कृष्ण नहीं मिले।

   

कृष्ण जिसे नहीं मिले, युगों युगों से आजतक उसी के हैं, और जिसे मिले उसे मिले ही नहीं।

   

कृष्ण को पाने का प्रयास मत कीजिये। पाने का प्रयास कीजियेगा तो कभी नहीं मिलेंगे। बस प्रेम कर के छोड़ दीजिए, जीवन भर साथ निभाएंगे कृष्ण। कृष्ण इस सृष्टि के सबसे अच्छे मित्र हैं। राधिका हों या सुदामा, कृष्ण ने मित्रता निभाई तो ऐसी निभाई कि इतिहास बन गया।


राधा और रुक्मिणी जब कभी मिली होंगी तो रुक्मिणी राधा के वस्त्रों में माखन की गंध ढूंढती होंगी, और राधा ने रुक्मिणी के आभूषणों में कृष्ण का बैभव तलाशा होगा। कौन जाने मिला भी या नहीं। सबकुछ कहाँ मिलता है मनुष्य को... कुछ न कुछ तो छूटता ही रहता है।


जितनी चीज़ें कृष्ण से छूटीं उतनी तो किसी से नहीं छूटीं। कृष्ण से उनकी माँ छूटी, पिता छूटे, फिर जो नंद-यशोदा मिले वे भी छूटे। संगी-साथी छूटे। राधा छूटीं। गोकुल छूटा, फिर मथुरा छूटी। कृष्ण से जीवन भर कुछ न कुछ छूटता ही रहा। कृष्ण जीवन भर त्याग करते रहे। हमारी आज की पीढ़ी जो कुछ भी छूटने पर टूटने लगती है, उसे कृष्ण को गुरु बना लेना चाहिए। जो कृष्ण को समझ लेगा वह कभी अवसाद में नहीं जाएगा। कृष्ण आनंद के देवता है। कुछ छूटने पर भी कैसे खुश रहा जा सकता है, यह कृष्ण से अच्छा कोई सिखा ही नहीं सकता। गुरुज्ञान का अथाह सागर हैं श्री कृष्ण।


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