मंगलवार, 12 फ़रवरी 2019

🙏भरत-कौशल्या🙏

कौशल्या ने जब से श्री रामचंद्र जी को वनवास हुआ जब से पानी तक ग्रहण नहीं किया है,और एक दासी से बोल रही हैं..

आली री राम-लखन कित होये
भोरही के भूखे होये हैं,
प्यासे मुख सूखे होये हैं
चलत पाय दुखे होये हैं,
जागे मग रात के।।
सूरज की किरण लागे,
लाल अकुलाने होये हैं
कन्टक ते झगा फाटे होये हैं गात के,
आली अब भयी साँझ, होये है काहु वन मॉझ
भई क्यों ना बांझ, हीय फाटु क्यों ना मातु के,
त्याग के घरोंना, काहू बन में तरौना
सोए हुए हैं छौना, बिछौना कपि पात कै।।

 महाराज दशरथ जी के लिए-
 हाय जिन पिता के, चार-चार प्रतापी लाल,
और आज क्रिया बिन, बेहाल पड़ी उन्हीं की काया है
बावरे विधाता, विचित्र तेरी माया है।

भरत द्वार पे आकर बोले-
पति विहीना, पुत्र हीना मातु री तुम हो कहां
आ गया घर का वही, षड्यंत्रकारी खल यहाँ।।

सुनते ही-
भरतही  देखी मात उठ धाई,
मूर्छित अवनी, परई  घई आई।।

"भरत ने कहा सही हुआ माता कि यदि तुमने मुझे नहीं देखा"

मुख ना देखो मां मेरा, मुख देखने में पाप है
किंतु कहदो हे भरत, तुम पर सभी का श्राप है।।

ओ भरत बेटा ना तुझमें, द्वेष की दुर्गंध है
साक्ष्णी मैं हूं, मुझे उस राम की सौगंध है।।

और गले से लगा लिया-
 "थन पर फिर स्त्रवही, नयन जल छाए हैं"

द्रोह करके केकैई क्या हानि मेरी कर गई,
देख ले कोई मेरी सूनी सी गोदी भर गई।
आ गया मेरा वही तू, राम सचमुच राम है
तू वही वो तू ही, भिन्न केवल नाम है।।

और मैंने तो बचपन में जब राम ने पहली बार मां मुझे बोला तो उसी दिन समझा दिया -
"कहे मोये मैया, मैने कहा मैया में भरत की,
बल जाँच भैया, तेरी मैया केकैई है"

अब उसकी आज्ञा से कैसे मना करती और बोलती के मुझे भी तुम्हारे साथ वनवास जाना है तो सब लोग सोचते कि भरत की माँ ने तो राम का राज्याभिषेक नहीं देखा किंतु क्या राम की माता भी भरत का राज्याभिषेक देखना नहीं चाहती।
      जय श्री राम
🙏 परम पूज्य महाराज श्री राजेश्वरानंद जी महाराज जी के श्री मुख से🙏
🙏केकैई-शत्रुघ्न🙏

दो दिन में दुर्देव दशा यूं किन्हीं तन की,
श्वेत भये सिर केश, क्षीण भई दृष्टि द्रगन की
रक्त बिहिना, अस्थिमय कंकाल देह में
माँ तू ना जानी जाती, यदि होती ना गेह में

पड़ी कुशासन पे विकल, व्यापो हाय विशेष दुख:
जीवन में देखो नहीं, ऐसो दीन, मलीन मुख।।

शत्रुघ्न जी  ने प्रणाम किया तो-
किसको प्रणाम कर रहे, प्रणम्य न दीखे कोई कहीं है,
कोई आवो मत, काली-मां इस मुँख की अभी धोई नहीं है।
माता ना कहो उन चारुचंद्र, रघुवंशी राजकुमारों में
मैं किस की माता बनू, सो कीर्ति अभी किसी ने खोई नहीं है

केकैई मां रोते-रोते बोली-
हां एक ही था, जो मुझको माता कहता था
शिशु पन से जिसको सुत समझा,
हाय अभागिन दे बनवास उसे, क्षणभर भी रोए नहीं है

यह सब जिस सुत के लिए किया
देकर सुहाग वैधव्य लिया
उसने भी त्याग "विनीत" दिया
तू मेरी माता नहीं है।।

अचानक केकैई माता रोते-रोते हंसने लगे और बोली कि-
मैं धन्य हो गई,
आज भरत ने यद्पि मुझ को त्याग दिया
कीच ही सही, मलमयी किंतु
कीच ने कमल उत्पन्न किया।

मेरी दुर्गंध "विनीत" बहे,
पर पुष्प मेरा सौरव मय है
रघुवंशी जो उचित लाल, चरित वह गौरवमय है।।
तू मेरी नहीं कोई "विनीत" वह भले ही कहे
पर मैं तो यह कहूंगी, सपूत वह मेरो है।।

🙏परम पूज्य महाराज श्री राजेश्वरानंद जी के श्री मुख से🙏