यहां रहकर मुझे अक्सर, वहां की याद आती है
समझ मैं खुद नहीं सकता, कहां की याद आती है
जहां में रहता हूं लेकिन, नहीं यह राज मैं समझा,
जहां वो कौन सा है, मुझको जहां की याद आती है
अकल उस तक नहीं पहुंची, वहीं पहुंचा अक्ल तक
मुझे मुर्शिद के इस, तर्जे-बयां की याद आती है
दीवाने मिट तो जाते हैं, मगर उल्फत नहीं आती
पतंगे को तो जलकर भी समा की याद आती है
फलक से टूटते तारे, जमीं पर आकर राजेश्वर
और जमीन के आदमी को, आसमा की याद आती है
🙏आपका देव🙏
समझ मैं खुद नहीं सकता, कहां की याद आती है
जहां में रहता हूं लेकिन, नहीं यह राज मैं समझा,
जहां वो कौन सा है, मुझको जहां की याद आती है
अकल उस तक नहीं पहुंची, वहीं पहुंचा अक्ल तक
मुझे मुर्शिद के इस, तर्जे-बयां की याद आती है
दीवाने मिट तो जाते हैं, मगर उल्फत नहीं आती
पतंगे को तो जलकर भी समा की याद आती है
फलक से टूटते तारे, जमीं पर आकर राजेश्वर
और जमीन के आदमी को, आसमा की याद आती है
🙏आपका देव🙏