बुधवार, 27 जनवरी 2016

गणतन्त्र दिवस के शुभ अवसर पर मेरे मित्र कमल सिंगला जी की ये कविता देश को समर्पित
कृपा 2 मिनट का समय निकाल कर जरूर पढें
भारत मां की कहानी माँ की जुबानी...
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एक समय था जब मेरी किस्मत में चाँद सितारे थे
काश्मीर की वादी में जन्नत को हसीं नज़ारे थे
नई नवेली दुल्हन से अरमान हज़ारों मन में थे
राम कृष्ण और नानक वीर अपनी कोख से जन्में थे
फिर जाने किस मनहूस घङी में कर्मों के फल चक्खे थे
जब अंग्रेजों ने मेरी छाती पे कदम ये रक्खे थे
फिर दो सौ सालों तक इन्होनें इज्ज़त मेरी लूटी थी
खून के आँसू रोई थी और किस्मत मेरी फूटी थी
मेरे भरे खज़ाने लूटे थे इन बेशरम हैवानों ने
फिर मेरे खातिर शीश कटाए कितनी ही सन्तानों ने
मेरी आजादी के खातिर जीना मरना भूल गए
राजगुरु सुखदेव भगत फाँसी के फन्दे झूल गए
फिर पन्द्रह अगस्त उन्नी सौ सैंतालीस की शुभ घङी आई थी
जब आजादी के सूरज के संग मेरी हुई सगाई थी
फिर छब्बी जनवरी उन्नी सौ पचास का वो दिन आया
धन्य धन्य हे भारत माँ देवों ने मंगल गाया
ङाक्टर भीमराव ने फिर आजादी का संविधान लिक्खा
स्वर्ण अक्षरों में मेरे गौरव का महाविधान लिक्खा
भूल गई सारे दुख जो वर्षों तक मैंने ढोए थे
फिर से मैनें अपनी आँखों में कुछ ख्वाब संजोए थे
अब मेरे बच्चे ध्यान रखेंगे गौरव और सम्मान का
सारी दुनिया में ङंका बाजेगा हिन्दुस्तान का
हाय मेरी किस्मत मेरी सन्तानें नमकहराम हुई
मेरे बच्चों के हाथों ही इज्ज़त मेरी नीलाम हुई
साँप के जैसे फन मारकर बैठ गए हैं नोटों पे
अपनी माँ को बेच दिया खादीधारी ने कोठों पे
तुम ही कहो मैं कैसे मनाउँ जश्न अपनी आजादी का
हर रोज देखती हूँ मैं नज़ारा खुद अपनी बरबादी की
अपने लहु से रंग बसन्ती फिर से ऐसा रंग दूँगी
मेरे आँसू पोंछें अपने भगत को फिर जन्म दूँगी
वन्दे मातरम् जय हिन्द
कुछ खास लोगों के आशीर्वाद के लिए अपना इस पोस्ट में टैग किया है
मेरा मकसद सिर्फ गुणीजन लोगों तक अपनी बात रखना है
इसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूँ
               🙏देव🙏